दर्द पर संस्मरण
‘आह से उपजा होगा गान’
की कविता-कल्पना में दर्द, पीड़ा, व्यथा या वेदना को मानव जीवन के मूल राग और काव्य के मूल प्रेरणा-स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है। दर्द के मूल भाव और इसके कारण के प्रसंगों की काव्य में हमेशा से अभिव्यक्ति होती रही है। प्रस्तुत चयन में दर्द विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।
वे कहीं गए हैं, बस आते ही होंगे
‘शिष्य। स्पष्ट कह दूँ कि मैं ब्रह्मराक्षस हूँ किंतु फिर भी तुम्हारा गुरु हूँ। मुझे तुम्हारा स्नेह चाहिए। अपने मानव जीवन में मैंने विश्व की समस्त विद्या को मथ डाला, किंतु दुर्भाग्य से कोई योग्य शिष्य न मिल पाया कि जिसे मैं समस्त ज्ञान दे पाता। इसलिए मेरी
दिवाकर मुक्तिबोध
क्या इमारत ग़मों ने ढाई है: निराला
पहले-पहल निरालाजी का नाम मैंने अपनी बी० ए० की पाठ्य-पुस्तक में पढ़ा। मैं उन दिनों बड़े ज़ोरों से उर्दू में ग़ज़लें लिखता था। हिंदी की ओर विशेष रुचि न थी। केवल 50 नंबर की हिंदी थी और वे नंबर भी डिवीज़न में शामिल न होते थे, इसलिए छात्र निहायत बेपरवाही से
उपेन्द्रनाथ अश्क
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere