Font by Mehr Nastaliq Web

भक्ति पर अड़िल्ल

भक्ति विषयक काव्य-रूपों

का संकलन।

मुरगी यह संसार चेहुँ चेहुँ करत है।

आतम राम को नाम हृदय नहिं धरत है॥

बिना राम नहिं मुक्ति झूठ सब कहत है।

बुल्ला हृदय बिचारि राम सँग रहत है॥

बुल्ला साहब
  • संबंधित विषय : राम

चली जाति है आयु, जगत-जंजाल में।

कहत टेरिकैं घरी-घरी, घरियाल में॥

समै चूकिकैं काम, फिरि पछताइए।

ब्रज-नागर नँदलाल सु, निसिदिन गाइए॥

नागरीदास

सुत-पित-पति-तिय मोह, महादुखमूल है।

जग-मृग-तृस्ना देखि, रह्यो क्यों भूल है?

स्वपन-राज-सुख पाय, मन ललचाइए।

ब्रज-नागर नँदलाल सु, निसिदिन गाइए॥

नागरीदास

ब्रज-बृन्दावन स्याम-पियारी भूमि हैं।

तहँ फल-फूलनि-भार रहे द्रुम झूमि हैं॥

भुव दंपति-पद-अंकनि लोट लुटाइए।

ब्रज-नागर नँदलाल तू निसिदिन गाइए॥

नागरीदास

नंदीस्वर, बरसानो गोकुल गाँवरो।

बंसीबट संकेत रमत तहँ साँवरो॥

गोबर्धन राधाकुंड सु जमुना जाइए।

ब्रज-नागर नँदलाल सु निसिदिन गाइए॥

नागरीदास

स्याम कठोर होहु, हमारी बार कों।

नैकु दया उर ल्याय, उदय करि प्यार कों॥

‘सहचरि सरन’ अनाथ, अकेलो जानिकैं।

कियो चहत खल ख्वार बचाओ आनिकैं॥

सहचरिशरण

स्याम सुबेद कौ सार है।

आशिक-तिलक, इश्क-करतार है॥

आनंद-कंद तीन गुनतें परें।

प्रीति-प्रतीति रसिक तासों करें॥

सहचरिशरण

नंद-जसोदा, को रति, श्रीवृषभानु हैं।

इनतें बड़ो कोउ, जग में आन हैं॥

गो-गोपी-गोपादिक-पद-रज ध्याइए।

ब्रज-नागर नँदलाल सु निसिदिन गाइए॥

नागरीदास

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere