संपूर्ण
कविता5
गीत4
लेख3
वीडियो83
यात्रा वृत्तांत1
एकांकी2
साक्षात्कार8
पत्र3
कहानी21
नाटक1
निबंध2
व्यंग्य1
जीवनी3
कथा46
अज्ञात की कहानियाँ
अन्याय के ख़िलाफ़
(आदिवासी स्वतंत्रता संघर्ष कथा) बात 1922 की है। उन दिनों अँग्रेज़ों का शासन था। भारत देश अँग्रेज़ों का ग़ुलाम था। अपने लोगों को तरह-तरह के अत्याचार सहने पड़ते थे। अँग्रेज़ शासन ने अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए भारत के लोगों को बहुत डरा-धमका कर रखा था। पर
दोस्त की पोशाक
एक बार नसीरूद्दीन अपने बहुत पुराने दोस्त जमाल साहब से मिले। अपने पुराने दोस्त से मिलकर वे बड़े ख़ुश हुए। कुछ देर गपशप करने के बाद उन्होंने कहा, “चलो दोस्त, मोहल्ले में घूम आएँ।” जमाल साहब ने जाने से मना कर दिया और कहा, “अपनी इस मामूली सी पोशाक में
रीना का दिन
हर दिन रीना सुबह जल्दी उठती है। उठकर बिस्तर को ठीक से लगाती है। नीम की दातुन से अपने दाँत साफ़ करती है। साबुन से नहाकर रीना स्वच्छ कपड़े पहनती है। वह अपने बाल में तेल लगाकर कंघी करती है। रीना माँ के बनाए पराठे और सब्ज़ी आनंद के साथ खाती है। रीना माँ
फूली रोटी
जमाल की माँ रसोई में खाना बना रही थीं। जमाल माँ को देख रहा था। जमाल का मित्र जय बर्तनों के साथ खेल रहा था। माँ रोटी बना रही थीं। जमाल भी रोटी बनाना चाहता था। उसने माँ से आटा माँगा। माँ ने उसे छोटी-सी लोई दे दी। जमाल रोटी बोलने लगा। उसने रोटी पर
रानी भी
रमा और रानी दो बहनें हैं। रानी हमेशा रमा के साथ रहती है। रमा ने अपने बालों में कंघी की। रानी ने भी अपने बालों में कंघी की। रमा ने चप्पल पहनी। रानी ने भी चप्पल पहन ली। रमा ने अपना बस्ता उठाया। रानी ने भी एक झोला उठा लिया। रमा स्कूल जाने
अपना-अपना काम
सिमरन बाग़ में बैठी स्कूल का काम रही थी। “ओ हो! मैं तो थक गई। इतना सारा लिखने-पढ़ने का काम!” वह सोचने लगी, “स्कूल जाओ तो वहाँ पढ़ो। घर आओ तो फिर पढ़ो। कितना अच्छा होता अगर मुझे पढ़ना न पड़ता।” पुस्तक रख सिमरन चारों ओर देखने लगी। उसने देखा कि मधुमक्खियाँ
सुनीता की पहिया कुर्सी
सुनीता सुबह सात बजे सोकर उठी। कुछ देर तो वह अपने बिस्तर पर ही बैठी रही। वह सोच रही थी कि आज उसे क्या-क्या काम करने हैं। उसे याद आया कि आज तो बाज़ार जाना है। सोचते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। सुनीता आज पहली बार अकेले बाज़ार जाने वाली थी। उसने अपनी
नन्हा फ़नकार
वह लड़का एक चौकोर लाल पत्थर के पास बैठ गया। उसने जल्दी-जल्दी कोई प्रार्थना बुदबुदाई और छेनी हथौड़ा उठाकर अपने काम में जुट गया। कुछ दिन पहले ही उसने इस पत्थर पर घंटियों की क़तारें और कड़ियाँ उकेरना शुरू किया था। लड़के ने एक अधबनी अधूरी घंटी पर छेनी
तीन साथी
एक था हाथी। एक थी बकरी। दोनों साथ-साथ जंगल में जाते। हाथी डाली झुकाता और बकरी पत्ते खाती। एक दिन दोनों जंगल में गए। वहाँ एक तालाब दिखाई दिया। वहाँ एक बेर का पेड़ था। हाथी ने पेड़ हिलाया। बकरी बेर खाने लगी। तभी पेड़ से चिड़िया का बच्चा पानी में गिरा।
आम का पेड़
गर्मियों के दिन थे। सौरभ के चाचाजी ने अपने बग़ीचे के एक टोकरी आम भेजे। आम बहुत मीठे थे। सौरभ को आम बहुत अच्छे लगे। उसने सोचा—ऐसे ही आम में अपने बग़ीचे में लगाऊँगा। उसने बग़ीचे में एक जगह थोड़ी मिट्टी खोदी। वहाँ आम की एक गुठली डाल दी। गुठली पर मिट्टी
नसीरूद्दीन का निशाना
एक दिन नसीरूद्दीन अपने दोस्तों के साथ बैठे बतिया रहे थे। बात ही बात में उन्होंने गप्प मारना शुरू कर दिया, “तीरंदाज़ी में मेरा मुक़ाबला कोई नहीं कर सकता। मैं धनुष कसता हूँ, निशाना साधता हूँ और तीर छोड़ता हूँ, शूँ...ऊँ...ऊँ। तीर सीधे निशाने पर लगता है।”
किसान की होशियारी
एक किसान अपना खेत जोत रहा था। अचानक कहीं से एक भालू आ गया। भालू किसान को मारने झपटा। किसान ने कहा, “मुझे क्यों मारते हो? उपज होने दो, जो कहोगे, वही खिलाऊँगा।” भालू ने कहा, “भूमि के ऊपर की उपज मेरी और नीचे की तुम्हारी रहेगी।” किसान ने आलू बो दिए।
तोसिया का सपना
एक दिन तोसिया ने सपना देखा। तोसिया बहुत सपने देखती है। वह उठकर सपनों के बारे में बात भी करती है। तोसिया को सपना आया कि दुनिया के सारे रंग उड़ गए हैं। कहीं कोई रंग नहीं बचा। उसने देखा कि सब कुछ सफ़ेद-सफ़ेद हो गया है। तोसिया उठी और सपने को याद करने
बरसात और मेंढक
सोमारू और कमली जंगल घूमने गए। लौटते समय उन्हें ज़ोर की भूख लगी। उन्हें एक गाय दिखी। कमली ने गाय से कहा, “ज़रा-सा दूध दे दो तो भूख मिटे।” गाय बोली, “मेरे खाने को घास ही नहीं है। मुझे हरी-हरी घास खिलाओ तो मैं दूध दूँ।” कमली और सोमारू चले घास लाने।
अंगुलिमाल
एक जंगल में अंगुलिमाल नाम का एक डाकू रहता था। वह बहुत निर्दयी था। वह जंगल से आने-जाने वालों को पकड़कर बहुत सताता था। वह उन्हें मार डालता था। वह उनकी अंगुलियों की माला बनाता था। उस माला को गले में पहनता था। इसीलिए लोग उसे अंगुलिमाल कहते थे। सभी लोग उससे
हुदहुद
हुदहुद को कलगी कैसे मिली एक बार सुलेमान नाम के बादशाह आकाश में उड़ने वाले अपने उड़नखटोले पर बैठे कहीं जा रहे थे। बड़ी गर्मी थी। धूप से वह परेशान हो रहे थे। आकाश में उड़ने वाले गिद्धों से उन्होंने कहा कि अपने पंखों से तुम लोग मेरे सिर पर छाया कर दो।
बजाओ ख़ुद का बनाया बाजा
पिछली कक्षाओं में तुमने पत्तों से पटाखा बनाया, ग्रीटिंग कार्ड बनाया, काग़ज़ से मुखौटे बनाकर नाटक खेला। आओ, इस बार हम बाजे बनाएँ और तरह-तरह की आवाज़ों का मज़ा लें। जलतरंग— पानी से भरे हुए प्यालों पर लकड़ी की पतली डंडी से चोट करने पर अलग-अलग तरह की आवाज़ें
मिठाई
एक दिन गधे का मन मिठाई खाने का हुआ। गधे ने अपने मित्रों से कुछ मीठा खाने को माँगा। भालू ने कहा, “शहद खा लो।” गधे ने मना कर दिया। ख़रगोश ने कहा, “गाजर खा लो।” गधे ने मना कर दिया। चींटे ने कहा, “गुड़ खा लो।” गधे ने मना कर दिया। हाथी ने कहा,
बीरबल की खिचड़ी
अकबर के दरबार में अनेक विद्वान् थे। बीरबल उन्हीं में से एक थे। वे अपनी चतुराई के लिए बड़े प्रसिद्ध थे। अपनी चतुराई से वे बादशाह को भी हरा देते थे। अकबर और बीरबल के बारे में अनेक कहानियाँ प्रसिद्ध हैं। लोग उन्हें बड़े चाव से सुनते-सुनाते हैं। एक बार
छुपन-छुपाई
एक दिन सब छुपन-छुपाई खेल रहे थे। उस दिन जीत की बारी थी। जीत सौ तक गिनकर सबको ढूँढ़ने निकला। मोहित दरवाज़े के पीछे मिल गया। जीत सबको कमरे में ढूँढ़ने लगा। बबली अलमारी के पीछे मिल गई। मारिया पलंग के नीचे मिल गई। उसके बाद जीत आँगन की तरफ़ गया। सिमरन
जैसा सवाल वैसा जवाब
बादशाह अकबर अपने मंत्री बीरबल को बहुत पसंद करता था। बीरबल की बुद्धि के आगे बड़े-बड़ों की भी कुछ नहीं चल पाती थी। इसी कारण कुछ दरबारी बीरबल से जलते थे। वे बीरबल को मुसीबत में फँसाने के तरीक़े सोचते रहते थे। अकबर के एक ख़ास दरबारी ख़्वाजा सरा को अपनी
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere