Oğuz Atay's Photo'

ओउज़ अताय

1934 - 1977 | ईनेबोलु

सुप्रसिद्ध तुर्की उपन्यासकार। 'तुतुनामायानलार' (द डिस्कनेक्टेड) कृति के लिए उल्लेखनीय।

सुप्रसिद्ध तुर्की उपन्यासकार। 'तुतुनामायानलार' (द डिस्कनेक्टेड) कृति के लिए उल्लेखनीय।

ओउज़ अताय के उद्धरण

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हमारा सारा सौंदर्य जिए हुए और सोचे हुए के बीच के दुखद अंतर्विरोध की छवि है।

…प्यार करना, अधूरी रह गई किताब को जारी रखने जैसा आसान काम नहीं था।

किसी वजह से हम फ़ोटो लेते समय भी मुस्कुराने के लिए बाध्य महसूस करते हैं। हम वहाँ भी ख़ुशी का खेल खेल रहे होते हैं।

जीवन का कोई पूर्वाभ्यास नहीं है जो अनुभव किया है उसे तो दुबारा जीना संभव है और ही उसे मिटाना संभव है। सबसे ज़रूरी बात यह है कि प्यार पहली बार नहीं, बल्कि आख़िरी बार करना चाहिए।

पहली शर्म कितनी प्यारी होती है, हालाँकि लोग इसे अक्षमता मान जल्द से जल्द दूर करने की कोशिश करते हैं। वह इस जादू की बर्फ़ को तोड़ने के लिए अपनी पूरी ताक़त से कोशिश करते हैं।

मैं जो उसे लिखता हूँ, उसे उसके अलावा हर कोई पढ़ता है।

तुम्हें मुझे समझना होगा, क्योंकि मैं कोई किताब नहीं हूँ। इसलिए मेरे मरने के बाद मुझे कोई नहीं पढ़ सकता, मुझे जीते जी ही समझना होगा।

लोग सिक्के की तरह हैं। उनके दो पहलू होते हैं—चित्त या पट्ट। एक पहलू वह दिखाते हैं और दूसरा हमें समय दिखाएगा।

  • संबंधित विषय : समय

जो मुझे समझेगा वो मुझे वहीं ढूँढ़ लेगा जहाँ मैं बैठा हूँ।

  • संबंधित विषय : खोज

यदि तुम मुझे एक दिन भूल जाओगे, यदि तुम मुझे एक दिन छोड़ ही दोगे तो मुझे यूँ थकाओ मत। मुझे मेरे कोने से बेवजह बाहर मत निकालो।

हर कोई आसानी से अपनी याददाश्त या ख़राब याददाश्त के बारे में शिकायत करता है, लेकिन वे कभी भी अपनी बुद्धिमत्ता के बारे में शिकायत नहीं करते हैं। वह नहीं जानते कि स्मृति भी बुद्धि का ही एक हिस्सा है।

मुझे किसी की ज़िंदगी रास आई और कोई ऐसी ज़िंदगी भी नहीं मिली जो मेरे लायक़ होती।

मेरे जीवन में मेरी रबड़ हमेशा मेरी पेंसिल से पहले ख़त्म हो जाती है, क्योंकि मैंने अपनी सच्चाइयाँ लिखने के बजाय उन्हें रख लिया और दूसरों की गलतियाँ मिटा दीं।

मेरे जीवन की शुरुआत और अंत तो स्पष्ट थे, मुझे बस बीच के हिस्से पर क़ाबू पाना था।

मानव-विकास नाम की कोई चीज़ नहीं है। उसे बस अपनी ख़ामियों की आदत हो जाती है, बस इतना ही है।

  • संबंधित विषय : आदत

मैं किताब पढ़ पाने के ख़याल से डरता हूँ।

शहर मुझसे होकर गुज़रते हैं।

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जिस भी चीज़ का पीछा करें, अंत में हम ख़ुद को पाते हैं।

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