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दण्डी

संस्कृत के महाकवि और काव्यशास्त्र के आचार्य। 'दशकुमारचरितम्' और 'काव्यादर्श' जैसी कृतियों के लिए समादृत।

संस्कृत के महाकवि और काव्यशास्त्र के आचार्य। 'दशकुमारचरितम्' और 'काव्यादर्श' जैसी कृतियों के लिए समादृत।

दण्डी के उद्धरण

कठिन कार्य का साधन बुद्धि है।

अन्यायपूर्वक दिए गए दंड ने भय और क्रोध को जन्म दिया।

राजनीति और श्रेष्ठ कर्मों के आरंभ के मूल में धन ही होता है।

ईश्वरीय शक्ति के सम्मुख मानवी शक्ति बली नहीं है।

निश्चय ही इस संसार में इच्छारहित प्राणी को संपदाएँ नहीं अपनाती और संपूर्ण कल्याणों की उपस्थिति उनके हाथ में नित्य रहती है जो आलसी नहीं हैं।

मनुष्यों में अनभ्यास से विद्या का, असंसर्ग से बुद्धिमानों का तथा अनिग्रह से इंद्रियों का विनाश हो जाता है।

गृही के प्रिय और हित के लिए पत्नी के गुण होते हैं।

अवज्ञा जिसकी बहिन है, वह है दारिद्र्य।

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