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रात, चाँद और गिटार

raat, chaand aur gitar

उत्कर्ष

अन्य

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उत्कर्ष

रात, चाँद और गिटार

उत्कर्ष

और अधिकउत्कर्ष

    तब तक

    गमले में रातरानी लौट चुकी थी

    चंद्रमा पूरा गोल होने से ज़रा-सा कम था

    पूरी छत

    सन्नाटे में गुँथी हुई थी

    और शहर में जितनी रोशनी थी

    चाँद के उजाले से ज़्यादा फैला दी गई थी

    झींगुर नहीं थे

    सन्नाटे के होने की दुविधा में भी

    कोई रात की कश्तियाँ बना

    अतीत की बरसात के जल में तैरा रहा था

    और कोई था

    जो हल्के गिटार के नोट्स बजाते

    ह्विटमैन गुनगुना रहा था

    ये एक ब्लूज़ वाली रात थी

    जिसके कोरों में ओपेरा का धागा बँधा हुआ था

    सन्नाटे को चीरता

    शनैः शनैः

    जोड़ता आज से आज को

    कल के लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उत्कर्ष
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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