Font by Mehr Nastaliq Web

अंतिम ऊँचाई

antim unchai

कुँवर नारायण

अन्य

अन्य

कुँवर नारायण

अंतिम ऊँचाई

कुँवर नारायण

और अधिककुँवर नारायण

    रोचक तथ्य

    इस कविता को The Viral Fever (TVF) की वेब-सीरीज़ Aspirants (2021) में बहुत सुंदर ढंग से प्रयोग किया गया है।

    कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब

    अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं,

    हमारे चारों ओर नहीं।

    कितना आसान होता चलते चले जाना

    यदि केवल हम चलते होते

    बाक़ी सब रुका होता।

    मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को

    दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में

    अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है।

    शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं

    कि सब कुछ शुरू से शुरू हो,

    लेकिन अंत तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं।

    हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती

    कि वह सब कैसे समाप्त होता है

    जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था

    हमारे चाहने पर।

    दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए

    जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे—

    जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब

    तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में

    जिन्हें तुमने जीता है—

    जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे

    और काँपोगे नहीं—

    तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं

    सब कुछ जीत लेने में

    और अंत तक हिम्मत हारने में।

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    शशिभूषण

    शशिभूषण

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 92)
    • रचनाकार : कुँवर नारायण
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए