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पिता के पत्र पुत्री के नाम (शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया)

pita ke patr putri ke naam (shuru ka itihas kaise likha gaya)

जवाहरलाल नेहरू

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जवाहरलाल नेहरू

पिता के पत्र पुत्री के नाम (शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया)

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    अपने पहले पत्र में मैंने तुम्हें बताया ता कि हमें संसार की किताब से ही दुनिया के शुरू का हाल मालूम हो सकता है। इस किताब में चट्टान, पहाड़, घाटियाँ, नदियाँ, समुद्र, ज्वालामुखी और हर एक चीज़, जो हम अपने चारों तरफ़ देखते हैं, शामिल है। यह किताब हमेशा हमारे सामने खुली रहती है। लेकिन बहुत ही थोड़े आदमी इस पर ध्यान देते; या इसे पढ़ने की कोशिश करते हैं। अगर हम इसे पढ़ना और समझना सीख लें, तो हमें इसमें कितनी ही मनोहर कहानियाँ मिल सकती हैं। इसके पत्थर के पृष्ठों में हम जो कहानियाँ पढ़ेंगे वे परियों की कहानियों से कहीं सुंदर होंगी।

    इस तरह संसार की इस पुस्तक से हमें उस पुराने ज़माने का हाल मालूम हो जाएगा जब कि हमरी दुनिया में कोई आदमी या जानवर था। ज्यों-ज्यों हम पढ़ते जाएँगे हमें मालूम होगा कि पहले जानवर कैसे आए और उनकी तादाद कैसे बढ़ती गई। उनके बाद आदमी आए; लेकिन वे उन आदमियों की तरह थे, जिन्हें हम आज देखते हैं। वे जंगली थे और जानवरों में और उनमें बहुत कम फ़र्क़ था। धीरे-धीरे उन्हें तज़ुर्बा हुआ और उनमें सोचने की ताक़त आई। इसी ताक़त ने उन्हें जानवरों से अलग कर दिया। यह असली ताक़त थी जिसने उन्हें बड़े से बड़े और भयानक से भयानक जानवरों से ज़्यादा बलवान बना दिया। तुम देखती हो कि एक छोटा सा आदमी एक बड़े हाथी के सिर पर बैठकर उससे जो चाहता है करा लेता है। हाथी बड़े डील डौल का जानवर है, और उस महावत से कहीं ज़्यादा बलवान है, जो उसकी गर्दन पर सवार है। लेकिन महावत में सोचने की ताक़त है और इसी की बदौलत वह मालिक है और हाथी उसका नौकर। ज्यों-ज्यों आदमी में सोचने की ताक़त बढ़ती गई, उसकी सूझ भी बढ़ती गई। उसने बहुत सी बातें सोच निकालीं। आग जलाना, ज़मीन जोत कर खाने की चीज़ें पैदा करना, कपड़ा बनाना और पहनना, और रहने के लिए घर बनाना, ये सभी बातें उसे मालूम हो गई। बहुत से आदमी मिलकर एक साथ रहते थे और इस तरह पहले शहर बने। शहर बनने के पहले लोग जगह-जगह घूमते फिरते थे और शायद किसी तरह के खेमों में रहते होंगे। तबतक उन्हें ज़मीन से खाने की चीज़ें पैदा करने का तरीक़ा नहीं मालूम था। उनके पास चावल थे, गेहूँ जिससे रोटियाँ बनती हैं। तो तरकारियाँ थीं और दूसरी चीज़ें जो हम आज खाते हैं। शायद कुछ फल और बीज उन्हें खाने को मिल जाते हों मगर ज़्यादातर वे जानवरों को मारकर उनका मांस खाते थे।

    ज्यों-ज्यों शहर बनते गए लोग तरह-तरह की सुंदर कलाएँ सीखते गए। उन्होंने लिखना भी सीखा। लेकिन बहुत दिनों तक लिखने को काग़ज़ था, और लोग भोजपत्र या ताड़ के पत्रों पर लिखते थे। आज भी बाज़ पुस्तकालयों में तुम्हें समूची किताबें मिलेंगी जो उसी पुराने ज़माने में भोजपत्र पर लिखी गई थीं। तब काग़ज़ बना और लिखने में आसानी हो गई। लेकिन छापेख़ाने थे और आजकल की भाँति किताबें हज़ारों की तादाद में छप सकती थीं। कोई किताब जब लिख ली जाती थी तो बड़ी मेहनत के साथ से उसकी नक़ल की जाती थी। ऐसी दशा में दुकान पर जा कर चटपट किताब ख़रीद सकतीं। तुम्हें किसी से उसकी नक़ल करानी पड़ती और उसमें बहुत समय लगता। लेकिन उन दिनों लोगों के अक्षर बहुत सुंदर होते थे और आज भी पुस्तकालयों में ऐसी किताबें मौजूद हैं, जो हाथ से बहुत सुंदर अक्षरों में लिखी गई थीं। हिंदुस्तान में ख़ासकर संस्कृत, फ़ारसी और उर्दू की किताबें मिलती हैं। अकसर नक़ल करने वाले पृष्ठों के किनारों पर सुंदर बेलबूटे बना दिया करते थे।

    शहरों के बाद धीरे-धीरे देशों और जातियों की बुनियाद पड़ी। जो लोग एक मुल्क में पास-पास रहते थे उनका एक दूसरे से मेलजोल हो जाना स्वाभाविक था। वे समझने लगे कि हम दूसरे मुल्क वालों से बढ़-चढ़कर हैं और बेवक़ूफ़ी से उनसे लड़ने लगे। उनकी समझ में यह बात आई, और आज भी लोगों की समझ में नहीं रही है कि लड़ने और एक दूसरे की जान लेने से बढ़कर बेवक़ूफ़ी की बात और कोई नहीं हो सकती। इससे किसी को फ़ायदा नहीं होता।

    जिस ज़माने में शहर और मुल्क बने उसकी कहानी जानने के लिए पुरानी किताबें कभी-कभी मिल जाती है। लेकिन ऐसी किताबें बहुत नहीं हैं। हाँ, दूसरी चीज़ों से हमें मदद मिलती है। पुराने ज़माने के राजे-महाराजे अपने का हाल पत्थर के टुकड़ों और खंभों पर लिखवा दिया करते थे। किताबें बहुत दिन नहीं चल सकतीं। उनका काग़ज़ बिगड़ जाता है। और उसे कीड़े खा जाते हैं। लेकिन पत्थर बहुत दिन चलता है। शायद तुम्हें याद होगा कि तुमने इलाहाबाद के क़िले में अशोक हिंदुस्तान का एक बड़ा राजा था। अगर तुम लखनऊ के अजायबघर में जाओ, तो तुम्हें बहुत से पत्थर के टुकड़े मिलेंगे जिन पर अक्षर खुदे हैं।

    संसार के देशों का इतिहास पढ़ने लगोगी तो तुम्हें उन बड़े-बड़े कामों का हाल मालूम होगा जो चीन और मिस्त्रवालों ने किए थे। उस समय यूरोप के देशों में जंगली जातियाँ बसती थीं। तुम्हें हिंदुस्तान के उस शानदार ज़माने का हाल भी मालूम होगा जब रामायण और महाभारत लिखे गए और हिंदुस्तान बलवान और धनवान देश था। आज हमारा मुल्क बहुत ग़रीब है और एक विदेशी जाति हमारे ऊपर राज कर रही है। हम अपने ही मुल्क में आज़ाद नहीं हैं और जो कुछ करना चाहें नहीं कर सकते। लेकिन यह हाल हमेशा नहीं थे और अगर हम पूरी कोशिश करें तो शायद हमारा देश फिर आज़ाद हो जाए, जिससे हम ग़रीबों की दशा सुधार सकें और आज यूरोप के कुछ देशों में है।

    मैं अपने अगले ख़त में संसार की मनोहर कहानी शुरू से लिखना आरंभ करूँगा।

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