रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर न मिले, मिले गाँठ परिजाय॥
रहीम कहते हैं कि प्रेम का रिश्ता बहुत नाज़ुक होता है। इसे झटका देकर तोड़ना यानी ख़त्म करना उचित नहीं होता। यदि यह प्रेम का धागा (बंधन) एक बार टूट जाता है तो फिर इसे जोड़ना कठिन होता है और यदि जुड़ भी जाए तो टूटे हुए धागों (संबंधों) के बीच में गाँठ पड़ जाती है।
-
संबंधित विषय : एनसीईआरटी कक्षा-6 (NCERT CLASS-6)और 4 अन्य
जमला लट्टू काठ का, रंग दिया करतार।
डोरी बाँधी प्रेम की, घूम रह्या संसार॥
विधाता ने काठ के लट्टू को रंगकर प्रेम की डोरी से बांधकर उसे फिरा दिया और वह संसार में चल रहा है।
अभिप्राय यह है कि पंचतत्त्व का यह मनुष्य शरीर विधाता ने रचा और सजाकर उसे जन्म दिया। यह शरीर संसार में अपने अस्तित्व को केवल प्रेम के ही कारण स्थिर रख रहा है।
हरे चरहिं तापहिं बरे, फरें पसारहिं हाथ।
तुलसी स्वारथ मीत सब, परमारथ रघुनाथ॥
वृक्ष जब हरे होते हैं, तब पशु-पक्षी उन्हें चरने लगते हैं, सूख जाने पर लोग उन्हें जलाकर तापते हैं और फलने पर फल पाने के लिए लोग हाथ पसारने लगते हैं (अर्थात् जहाँ हरा-भरा घर देखते हैं, वहाँ लोग खाने के लिए दौड़े जाते हैं, जहाँ बिगड़ी हालत होती है, वहाँ उसे और भी जलाकर सुखी होते हैं और जहाँ संपत्ति से फला-फूला देखते हैं, वहाँ हाथ पसार कर मांगने लगते हैं)। तुलसी कहते है कि इस प्रकार जगत में तो सब स्वार्थ के ही मित्र हैं। परमार्थ के मित्र तो एकमात्र श्री रघुनाथ जी ही हैं।
जरउ सो संपत्ति सदन, सुख सुहृद मातु पितु भाइ।
सनमुख होत जो रामपद, करइ न सहस सहाइ॥
वह संपत्ति, घर, सुख, मित्र, माता-पिता और भाई आदि सब जल जाएँ, जो श्री राम के चरणों के सम्मुख होने में हँसते हुए (प्रसन्नतापूर्वक) सहायता नहीं करते।
माता पिता लगावते, छाती सौं सब अंग।
सुन्दर निकस्यौ प्रान जब, कोउ न बैठै संग॥
मेरै मंदिर माल धन, मेरौ सकल कुटुंब।
सुंदर ज्यौं को त्यौं रहै, काल दियौ जब बंब॥
सुन्दर पक्षी वृक्ष पर, लियौ बसेरा आनि।
राति रहे दिन उठि गये, त्यौं कुटंब सब जानि॥
सुन्दर भइया कहत हौ, मेरी दूजी बांह।
प्राण गयौ जब निकसि कैं, कोउ न चंपै छांह॥
सुन्दर लोग कुटंब सब, रहते सदा हजूरि।
प्रान गये लागे कहन, काढौ घर तें दूरि॥
संग सखा सब तजि गये, कोउ न निबहिओ साथ।
कहु नानक इह विपत में, टेक एक रघुनाथ॥
सुन्दर बंध्या देह सौं, कबहु न छूटा भाजि।
और कियौ सनमंध अब, भई कोढ मैं खाजि॥
सुन्दर नारी करत ही, पिय सौं अधिक सनेह।
तिनहूं मन मैं भय धर्यौ, मृतक देखि करि देह॥
निज करि देखिओ जगत में, कोइ काहु को नाहिं।
नानक थिर हरि भक्ति है, तिह राखो मन माहिं॥
सुन्दर समझि विचार करि, तेरौ इनमैं कौंन।
आपु-आपु कौं जाहिगें, सुत दारा करि गौंन॥
मात पिता बंधव सकल, सुत दारा सौं हेत।
सुन्दर बंध्या मोहि करि, चेतै नहीं अचेत॥
सुन्दर नाना जोनि मैं, जन्म-जन्म की भूल।
सुत दारा माता पिता, सगलै याही सूल॥
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere