स्मृति पर ब्लॉग
स्मृति एक मानसिक क्रिया
है, जो अर्जित अनुभव को आधार बनाती है और आवश्यकतानुसार इसका पुनरुत्पादन करती है। इसे एक आदर्श पुनरावृत्ति कहा गया है। स्मृतियाँ मानव अस्मिता का आधार कही जाती हैं और नैसर्गिक रूप से हमारी अभिव्यक्तियों का अंग बनती हैं। प्रस्तुत चयन में स्मृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

‘पुनः सवेरा एक और फेरा है जी का’
उस्ताद राशिद ख़ान को एक संगीत-प्रेमी कैसे याद कर सकता है? इस पर ठहरता हूँ तो कुछ तस्वीरें ज़ेहन में आती हैं। ‘राग यमन’, ‘मारवा’, ‘सोहनी’, ‘मेघ’ और ‘ललित’ जैसे गंभीर ख़याल गाने वाले सिद्ध गायक—राशिद ख़ान
कुमार मंगलम

साधारण का सहज सौंदर्य
‘‘जिस शैलजा से तुम यहाँ पहली बार मिल रहे हो मैं उसी शैलजा को ढूँढ़ने आई हूँ, सामने होकर भी मिलती नहीं है, अगर तुम्हें मुझसे पहले मिल जाए न, तो सँभालकर रख लेना।’’ ‘थ्री ऑफ़ अस’ फ़िल्म के लगभग आधा बीत ज
सुदीप्ति

जीवन का पैसेंजर सफ़र
यह नब्बे के दशक की बात है। 1994-95 के आस-पास की। हम राजस्थान विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे। साहित्य में रुचि रखने वाले हम कुछ दोस्तों का एक समूह जैसा बन गया था। इस समूह को हमने ‘वितान’ नाम दिया था।
प्रभात

पढ़ने-लिखने के वे ज़माने
जहाँ से मुझे अपना बचपन याद आता है, लगभग चार-पाँच साल से, तब से एक बात बहुत शिद्दत से याद आती है कि मुझे पढ़ने का बहुत शौक़ हुआ करता था। कुछ समय तक जब गाँव की पाठशाला में पढ़ता था, पिताजी जब भी गाँव आते त
विपिन कुमार शर्मा

शहर, अतीत और अंत के लिए
शहर शहर अपने आपमें कितना कुछ समेटे रहता है—बहुत सारी त्रासदी, पलायन, सांप्रदायिक दंगे और बहुत सारी ख़ुशियाँ भी। आप बहुत दिनों तक अकेले पड़े रहते हैं—हॉस्टल के कमरें में, किसी लाइब्रेरी के एक कोने में
प्रदीप्त प्रीत

दुनिया के बंद दरवाज़ों को शब्दों से खोलता साहित्यकार
हर बार जब आरा पहुँचता था, तो रामनिहाल गुंजन जी से ज़रूर मिलता था। इस बार 10 अप्रैल को पहुँचने के बाद उन्हें फ़ोन किया, तो उन्होंने बताया कि घर में कुछ काम लगा रखा है। मुझे लगा कि छत पर कोई कमरा बनवा रहे
सुधीर सुमन

विछोह की ख़ूबसूरती अधूरेपन में है
रज़िया सुल्तान में जाँ निसार अख़्तर का लिखा और लता मंगेशकर का गाया एक यादगार गीत है : ‘‘ऐ दिल-ए-नादाँ...’’, उसके एक अंतरे में ये पंक्तियाँ आती हैं : ‘‘हम भटकते हैं, क्यूँ भटकते हैं, दश्त-ओ-सेहरा मे
सुदीप्ति

मुक्तिबोध का दुर्भाग्य
आज 11 सितंबर है—मुक्तिबोध के निधन की तारीख़। इस अर्थ में यह एक त्रासद दिवस है। यह दिन याद दिलाता है कि आधुनिक हिंदी कविता की सबसे प्रखर मेधा की मृत्यु कितनी आसामयिक और दुखद परिस्थिति में हुई। जैसा कि ह
सुशील सुमन

अक्टूबर किसी चिड़िया के बिलखने की आवाज़ है
यहाँ तुम नहीं हो। इस जगह सिर्फ़ तुम्हारी संभावनाएँ हैं, बिल्कुल पिघले हुए मोम की तरह, जिसमें न लौ बची है और न पिघलने की उष्णता। बस बची है, तो रात की एक आहट और किसी ओझल क्षण में जलते रहने की याद। क्वार
आदर्श भूषण

मैं लेखकों की तरह नहीं लिख सकता
But there are passions that it is not for man to choose. They are born with him at the moment of his birth into this world, and he is not granted the power to refuse them.
विजय शर्मा

नकार को दिसंबर की काव्यात्मक आवाज़
कोई आहट आती है आस-पास, दिसंबर महीने में। नहीं, आहट नहीं, आवाज़ आती है। आवाज़ भी ऐसी जैसे स्वप्न में समय आता है। आवाज़ ऐसी, मानो अपने जैसा कोई जीवन हो, समस्त ब्रमांड के किसी अनजाने-अदेखे ग्रह पर। किसी
प्रांजल धर

चलो भाग चलते हैं
तो क्या हुआ अगर मैंने ये सोचा था कि तुम चाक पर जब कोई कविता गढ़ोगी, मैं तुम्हारे नाख़ूनों से मिट्टी निकालूँगा। तो क्या हुआ अगर सघन मुलाक़ातों की उम्मीद में हमने कई मुलाक़ातों को मुल्तवी किया। उन योजना
अतुल तिवारी

भूलने की कोशिश करते हुए
मई 2021 हम किसी दरवाज़े के सामने खड़े हों और भूल जाएँ कि दरवाज़े खटखटाने पर ही उन्हें खोला जाता है। ठीक दूसरी तरफ़ तुम जैसा ही कोई दूसरा हो जिसने आवाज़ें पहचाना बंद कर दिया हो और जो उस चौहद्दी को ह
हरि कार्की

शहर, अतीत और अंत के लिए
शहर शहर अपने आपमें कितना कुछ समेटे रहता है—बहुत सारी त्रासदी, पलायन, सांप्रदायिक दंगे और बहुत सारी ख़ुशियाँ भी। आप बहुत दिनों तक अकेले पड़े रहते हैं—हॉस्टल के कमरें में, किसी लाइब्रेरी के एक कोने में
प्रदीप्त प्रीत

बहुत धीरे चलती थी मेरी काठगोदाम
काठगोदाम एक्सप्रेस। गोरखपुर से होते हुए हावड़ा जंक्शन से चल कर काठगोदाम को जाने वाली। जो कई वर्षों से प्लेटफ़ॉर्म नंबर चार पर आ रही है। धीरे-धीरे। हथिनी की तरह मथते हुए। हल्के पदचापों सहित। डेढ़-दो घंटे