बेस्या बिटिया नील है; बन सावाँ पुत जान। वो आई सब घर भरै, दरब लुटावत आन॥
भुइयां खेड़े हर ह्वै चार। घर होय गिहथिन गऊ दुधार॥ अरहर की दाल जड़हन का भात। गागल निबुआ औ घिउ-तात॥ खाँड दही जो घर में होय। बाँके नैन परोसै जोय॥ कहैं घाघ तब सबही झूठा। उहाँ छोड़ि इहँवै बैकूँठा॥
खेती करै बनिज को धावे। ऐसा डूबै थाह न पावै॥
घर की खुनुस औ जर की भूख। छोट दमाद बराहे ऊख॥ पातर खेती भकुवा भाइ। घाघ कहैं दुख कहाँ समाय॥
पूत न मानै आपन डाँट। भाई लड़ै चहै नित बाँट॥ तिरिया कलही करकस होइ। नियरा बसल दुहुट सब कोई॥ मालिक नाहिन करै विचार। घाघ कहैं ई बिपति अपार॥
परहथ बनिज संदेसे खेती। बिन घर देखे ब्याहै बेटी॥ द्वार पराये गाड़ै थाती। ये चारों मिलि पीटैं छाती॥
खेती पाती बीनती, औ घोड़े की तंग। अपने हाथ सँवारिये, लाख लोग हों संग॥
जेकर ऊँचा बैठना, जेकर खेत निचान। ओकर बैरी का करै, जेकर मीत दिवान॥
उत्तर चमकै बीजली, पूरब बहनो बाउ। घाघ कहैं भड्डर से, बरधा भीतर लाउ॥
गया पेड़ जब बकुला बैठा। गया गेह जब मुड़िया पैठा॥ गया राज जहँ राजा लोभी। गया खेत जहँ जामी गोभी॥
बीघा बायर होय बाँध जो होय बँधाये। भरा भुसौला होय बबुर जो होय बुवाये॥ बढ़ई बसे समीप बसूला बाढ़ घराये। पुरखिन होय सुजान बिया बोउनिहा बनाये॥ बरद बगौधा होय बरदिया चतुर सुहाये। बेटवा होय सपूत कहे बिन करै कराये॥
उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो संग रहा। जो पूछेसि हरवाहा कहाँ, बीज बूड़िगे तिनके तहाँ॥
जौ गेहूँ बोवै पाँच पसेर। मटर के बीघा तीसै सेर॥ बोवै चना पसेरी तीन। तीन सेर बीघा जोन्हरी कीन॥ दो सेर मोथी अरहर मास। डेढ़ सेर बिगहा बीज कपास॥ पाँच पसेरी बिगहा धान। तीन पसेरी जड़हन मान॥ सवा सेर बीघा साँवाँ मान। तिल्ली सरसों अँजुरी जान॥ बरैं कोदो सेर बोआओ। डेढ़
माघ क ऊखम जेठ का जाड़। पहिलै बरखा भरिगा ताल॥ कहैं घाघ हम होब बियोगी। कुँआ के पानी धोइहैं धोबी॥
छीछी भली जौ चना, छीछी भली कपास। जिनकी छीछी ऊखड़ी, उनकी छोड़ो आस॥
दिन का बद्दर रात निबद्दर। बहै पुरवैया झब्बर-झब्बर॥ घाघ कहैं कुछ होनी होई। कुँवा के पानी धोबी धोई॥
उत्तम खेती आप सेती, मध्यम खेती भाई सेती। निकृष्ट खेती नौकर सेती, बिगड़ गई तो बलाय सेती॥
चढ़त जो बरसै चित्रा, उतरत बरसै हस्त। कितनौ राजा डाँड़ ले, हारे नहीं गृहस्त॥
खेती तो थोड़ी करे, मिहनत करे सिवाय। राम चहें वही मनुष को, टोट कभी न आय॥
कदम-कदम पर बाजरा, मेढ़क कुदौनी ज्वार। ऐसे बोवै जौ कोई, घर-घर भरै कोठार॥
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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