‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥
गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है। जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीजों को बोता है। जैसे बीज बोएगा वैसे ही इसे अंत में फल काटने को मिलेंगे। भाव यह है कि यदि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसे शुभ फल मिलेंगे और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा।
तिय पिय सेज बिछाइयों, रही बाट पिय हेरि।
खेत बुवाई किसान ज्यों, रहै मेघ अवसेरि॥
धन्ना कहै हरि धरम बिन, पंडित रहे अजाण।
अणबाह्यौ ही नीपजै, बूझौ जाइ किसाण॥
बोय सीसु सींच्यौ सदा, हृदय-रक्त रण-खेत।
बीर-कृषक कीरति लही, करी मही जस-सेत॥
लै असि-हलु जोति महि, बोयौ सीस-सुधान।
करि सुचि खेती जसु लुन्यौ, धनि रजपूत-किसान॥
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere