
काव्य को अपनी सुंदर अतिशयता से चकित करना चाहिए, न कि विलक्षणता से। पाठक को काव्य उसके अपने ही विचारों का शब्दरूप लगना चाहिए और लगभग एक स्मृति जैसा ही प्रतीत होना चाहिए।

पढ़कर आनंद के अतिरेक से आँखें यदि गीली न हो जाएँ तो वह कहानी कैसी?
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere