यशवंत दिनकर पेंढरकर के उद्धरण

क्या प्रीति का लक्षण यही है कि पुरुष स्त्री को काँच की गुड़िया के समान संभाल कर रखे? वस्तुतः अपने जैसा ही उसे बनाना सच्चे प्रेम का लक्षण है। इसलिए मुझे अपने जैसा ही श्रमजीवी बना लो क्योंकि घर मंदिर नहीं है और मैं गृहिणी हूँ, देवी नहीं।

हे माँ! तुममें ही कामधेनु की सामर्थ्य है। तुम मंगलधाम हो, तपस्वियों का अद्वैत हो। तुममें सागर की गंभीरता है, पृथ्वी की उदारता है। तुम्हारे नेत्रों में शांत चंद्रमा का तेज़ है और हृदय में मेघमालाओं का सघन वात्सल्य। हे मां! इन सब गुणों का वास तुम में ही है

देश जिनका देवता है, उसकी सेवा जिनका धर्म है, दासता से उसकी मुक्ति जिनका ध्येय है और जो काल को मार्कण्डेय के समान जीत लेते हैं—आओ, हम उनकी आरती गाएँ।
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