विद्यापति के उद्धरण

विधाता के पास सौंदर्य का जितना कोष था, इसके अनुपम सौंदर्य की रचना करते हुए, वह सब सूना हो गया। यही जानकर विधाता ने शून्य को लाकर कामिनी की केश-राशि का निर्माण किया।
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यौवन रूपी नगर में अपने रूप को बेचना। जितना उचित हो, उतना ही मोल भाव करना।
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आज का समय कल नहीं पाओगी। यौवन रूपी बाँध से पानी छूट रहा है।
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