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विद्यापति

1380 - 1460 | मधुबनी, बिहार

‘मैथिल कोकिल’ के नाम से लोकप्रिय। राधा-कृष्ण की शृंगार-प्रधान लीलाओं के ग्रंथ ‘पदावली’ के लिए स्मरणीय।

‘मैथिल कोकिल’ के नाम से लोकप्रिय। राधा-कृष्ण की शृंगार-प्रधान लीलाओं के ग्रंथ ‘पदावली’ के लिए स्मरणीय।

विद्यापति की संपूर्ण रचनाएँ

पद 40

उद्धरण 3

आज का समय कल नहीं पाओगी। यौवन रूपी बाँध से पानी छूट रहा है।

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यौवन रूपी नगर में अपने रूप को बेचना। जितना उचित हो, उतना ही मोल भाव करना।

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विधाता के पास सौंदर्य का जितना कोष था, इसके अनुपम सौंदर्य की रचना करते हुए, वह सब सूना हो गया। यही जानकर विधाता ने शून्य को लाकर कामिनी की केश-राशि का निर्माण किया।

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जय जय भैरव असुर-भयाउनि | Vidyapati | Hindi Poem | Hindwi

राजीव रंजन झा

जय जय भैरव असुर-भयाउनि | Vidyapati | Hindi Poem | Hindwi

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