लल्लेश्वरी के उद्धरण

अभी में अल्पायु बाला थी। दम भर में ही पूर्ण-यौवना बनी। अभी मैं चलती-फिरती थी और अभी जलकर राख बन गई।
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विचारहीन लोग धर्मग्रंथों को उसी प्रकार बाँचते रहते हैं, जिस प्रकार पिंजरे में तोता राम-राम की रट लगाता है।
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हे मूढ़! व्रतधारण और साज-सज्जा कर्तव्य कर्म नहीं है। न ही मात्र काया की रक्षा कर्तव्य कर्म है। भोले मानव! देह की सार-संभाल ही कर्तव्य कर्म नहीं। सहज विचार (आत्म-तत्त्वचिंतन) वास्तविक उपदेश है।
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शेरनी का शिकार बाज़ को क्या मालूम! बाँझ को पुत्र के प्रति वात्सल्य का क्या ज्ञान !
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