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दीदी, मेरी माँ

didi, meri maan

यशवंत कुमार

यशवंत कुमार

दीदी, मेरी माँ

यशवंत कुमार

(एक)

घर, रसोई, बरदौर और खेत

माँ के पास काम बहुत था

दिन खप जाता था इसमें

पर उनमें

एक पक्षी की आत्मा बसती थी

रात में अपनी नींद से

वो मेरे लिए समय चुगती थीं

दिन में दीदी थीं जो

कम उम्र में ही माँ बन गई थीं

मेरी माँ।

(दो)

मेरी देखभाल में

उनका स्कूल जाना कम हुआ

और एक दिन उन्हें

कम उपस्थिति के कारण

स्कूल से निकाल दिया गया

वह मुझे पंखा झलते हुए

सुबक रही थीं और

कोई त्रासद परीकथा सुना रही थीं

उनके रोने में एक गीतात्मकता थी

ऐसा लगता था कि

रोना उस कथा-परिवेश का हिस्सा हो

पर ऐसा था नहीं

उनके राशि में शनि नहीं

मैं पड़ गया था।

(तीन)

माँ ने अपनी नींद से

समय चुगा मेरे लिए

दीदी ने

कहाँ से चुगा समय?

(चार)

एक उम्र तक

अगर कोई मुझसे पूछता था

कि तुम्हारी माँ कौन हैं?

तो मैं बेहिचक

दीदी की ओर इशारा कर देता था

पड़ोस की औरतें

तेज ठहाका मारती थीं

दीदी अपना मुँह दुपट्टे में छिपा लेती थीं‌।

(पाँच)

दीदी फिर बड़ी हुईं

और बड़ी हुईं

उनकी उम्र इतनी तो थी ही कि

जब वह मुझे 'बेटा' कहती थीं

तो किसी को भी

संदेह नहीं होता था कि

वह मेरी 'माँ' नहीं हैं

उस वक्त माँ

खिल-खिलाकर हँस देती थीं

जैसे वह मेरी दादी हों।

(छह)

दीदी के मातृत्व से

माँ को ईर्ष्या होती थी

वह कहती भी थीं कि

अगर उनके पास काम कम होते

तो वो मुझे

दीदी की तरह पालतीं

स्रोत :
  • रचनाकार : यशवंत कुमार
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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