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राह में क़दम डगमगाए जब

raah mein qadam Dagmagaye jab

गीता खाती

गीता खाती

राह में क़दम डगमगाए जब

गीता खाती

राह में यदि क़दम डगमगाए जब

थोड़ा-सा रुक जाना

संभल के चलना तब

अनजानी राहों में आवाज़ दे अगर कोई

पलट कर पीछे देखना मत

पलट कर देखने वाले इतिहास बनाते हैं कब

राहों में यदि क़दम डगमगाए जब

साहस और हिम्मत से राहों में क़दम रख

और आगे बढ़े

हौसले बुलंद हो तो किस बात का डर

देर हो भले ही अँधेर नहीं होगी अब

इरादे नेक हैं मुश्किल अनेक हैं अब

मेहनत की है तुमने मंज़िल दूर नहीं होगी अब

राह में यदि क़दम डगमगाए जब थोड़ा-सा रुक जाना

संभल के चलना तब।

स्रोत :
  • रचनाकार : गीता खाती
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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