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पलायन

palayan

परमेश्वर फुंकवाल

अन्य

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और अधिकपरमेश्वर फुंकवाल

    वे श्रमिक थे

    वे पैदल ही पार कर सकते थे

    प्रतीक्षाओं के पुल

    वे प्रतीक्षा नहीं कर सकते थे

    वे अँधेरे में चल रहे थे

    पर उन्हें भरोसा था उजाले पर

    इस समय चलना ही ज़रूरी था

    बात करना भी

    जिसके कंधे पर गठरी थी

    उसने बिटिया को गोद में उठाए राह चर से प्रश्न किया

    कहाँ जाओगे

    उसे पता था

    वह बस चल रहा था

    हज़ार मील की दूरी पर जो घर वह छोड़कर आया था

    पता नहीं वह अब हो कि हो

    अब वहाँ पहुँच भी सकेगा कि नहीं

    कौन जाने उसके दरवाज़े खुले भी होंगे उसके लिए

    उसके गले में उत्तर में प्रश्न पूछने की भी

    आर्द्रता शेष नहीं थी

    सब कह रहे थे

    यह लड़ाई हम जीतेंगे

    यह लड़ाई समय माँगती है

    दुनिया लड़ रही है शोध चल रहे हैं

    उसे बस चलते रहना है यही पता था

    जिन उजालों की आस में वे चल रहे थे

    उसी की दस्तक पर

    वह बच्ची अपने पिता को जगाने की जद्दोजहद में थी

    वह अपनी लड़ाई लड़ चुका था

    अपनी दूरी चल चुका था

    पिछली रात इतना थक चुका था

    वह अब बस सोना चाहता था

    उसे चिंता का बुख़ार था

    वह आवाज़ देना चाहता था

    उसकी बंद साँसों में सूखी ख़ासी थी

    उसे कोरोना नहीं था

    स्रोत :
    • रचनाकार : परमेश्वर फुंकवाल
    • प्रकाशन : समालोचन

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