उनके तलुओं में दुनिया का मानचित्र है

unke taluon mein duniya ka manachitr hai

प्रदीप सैनी

प्रदीप सैनी

उनके तलुओं में दुनिया का मानचित्र है

प्रदीप सैनी

 

एक

वे हमारे सामने थे और पीछे भी
वे हमारे दाएँ थे और बाएँ भी
वे हमारे हर तरफ़ थे
बेहद मामूली कामों में लगे हुए बेहद मामूली लोग
जो अपने बेहद मामूली हाथों से दुनिया को किसी गेंद की तरह रोज़ बनाते थे 
कि हम उससे खेल सकें अपने मन मुताबिक़

लेकिन हमने उन्हें ठीक-ठीक कभी नहीं देखा
अपनी इन आँखों से
हमारी आँखों और दुनिया के बीच की जगह
कैमरे ने हथिया ली थी
हम वही देखते हैं जो कैमरे की आँख में होता है

अब उन्हें अचानक दृश्य में प्रकट हुए 
हैरानी से देख रहे हैं हम 
जैसे वे किसी दूसरी दुनिया से निकल कर आए हों
और उन्हें किसी तीसरी दुनिया में जाना हो।

दो

हमारी सभ्यताओं का स्थापत्य उनके पसीने से जन्मा है
हमारी रोशनियों में चमकता लाल
उनके लहू का रंग है
कोई चौराहा उन्हें दिशाभ्रमित नहीं करता
वे जानते हैं कौन-सा है शहर से बाहर जाने का रास्ता

वे नहीं पूछेंगे हमसे
कौन-सी सड़क जाती है उनके गाँव
उन्हें याद है लौट जाने के सभी रास्ते

उनके तलुओं में दुनिया का मानचित्र है।

तीन

इन लंबे और चौड़े रास्तों पर 
वे नहीं आए थे हक़ीक़त में 
किसी स्वप्न का पीछा करते हुए 

एक भरम खींच लाया था उन्हें

अब जो बीच रास्ते किसी चप्पल-सा टूट गया है

वे जान गए हैं
इन रास्तों से नहीं पहुँचा जा सकता है कहीं
ये सभी वापिस लौट आने के रास्ते हैं।

चार

हमारे गोदाम अनाज से भरे थे और दिल बेशर्मी से

हमने तुम्हारी भूख को देखा और अपनी भूख को याद किया
हमनें कितनी ही रेसिपीज़ मंत्रों की तरह
खा-पीकर सोई हुई अपनी भूख के कान में फूँकी

जब समय दर्ज कर रहा था भूख से हुई तुम्हारी मौत
हमनें अपनी पाक-कला के नमूनों को श्रद्धांजलि के तौर पर दर्ज किया

हम भूल गए कि किसी भूखे समय में 
अपनी थाली की नुमाइश से बड़ी अश्लीलता कोई नहीं है।

पाँच

जिन्हें नहीं करता है जाते हुए 
कहीं से कोई विदा
ऐसे अभागों के पहुँचने का
क्या कहीं करता है कोई इंतिज़ार?

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रदीप सैनी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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