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राधा कहाँ है-5

radha kahan hai 5

अनुवाद : एन. जी. देवकी

सुगतकुमारी

सुगतकुमारी

राधा कहाँ है-5

सुगतकुमारी

कहाँ नमन करते श्वेतमेघ,

कहाँ उदित आकाश गंगा,

कहाँ गगन की महानीलिमा के साथ

क्षीरोदधि सी उत्तुंग शिखर लहरें उठकर

अतिभीम हो प्रोज्ज्वलित!

उतरते देववृंद उसमें।

कहाँ चोटियाँ फहराती रत्नांबर

प्रशोभित हरित हो, पीत हो, लालिमा हो।

कहाँ वे लसित टूटे नील रत्न-सा,

रजत-सा, पिघलते सुवर्ण-सा।

कहाँ पेड़ बनते हैं देवदारु

मुकुट धारण करते।

तटिनी हिमनदी बनती आकाश गंगा,

पवन में है आकाश कुसुम-गंध

वर्षा यहाँ वर्षा नहीं, है हिमवर्षा, पुष्पवर्षा,

दिव्यवर्षा, उदार कारुण्य वर्षा!

कहाँ आँखों के परे भी

नयन चौंधियाते श्वेतबालू कण।

कहाँ विश्व प्रकृति भद्रा हो रुद्रा हो

रतिमदन देवता रूप हो

प्रतिक्षण बदल-बदल के दिखाती

प्रणय भय रोष कारुण्यभाव।

यहाँ ये क्रूर, कष्ट देने वाली

वहाँ सौम्य लावण्यरूपिणी

यहाँ भयानक मृत्युरूपसी

उधर शांत, ध्यानमग्ना।

यहाँ तो हुँकारती भागीरथी

तीव्र प्रवहित विनष्ट करती तट।

वहाँ तो सुंदरी मंद मंदाकिनी

दया से प्रदान करती शुभाशिषः।

यह स्थल शिव का तो वह शिवानी का

उसने अर्धांश कब से अपनाया!

लगाई उसने “फूलों की तलहटी”

भरा है उसी से विक्षोभ-सुमन सागर का!

उमा फूल तोड़ती इधर से,

और उधर कंकालों से भरी शिवभूमि!...

यहाँ तो पवन में पायल की मंद

मुसकान, नव कस्तूरी गंध

यथेच्छ, ले के पीने को वांछित

सुगंध मारुत है यहाँ।

वहाँ तो! श्वास ले सकते पलायन-प्रेरक

वह वायुशून्य गर्त!

वह महादेव नृत्तरंग! क्रोध, भय,

मृत्यु, संहारभूमि,

उधर सब काल के काल की भूमि,

संभृत-अट्टहास, मेघगर्जन, हिम

बिखेरती आँधी का चीत्कार

पदाधात से शिथिल होते जटाजूट

हिम-परत हिलती काली शिलासंधि उखड़ते

छितरते घुमड़ते चीखते आती उग्र पाषाणी वर्षा!

यहाँ इस हिम चट्टान पर नग्न

आँखें बंद पद्मासन स्थित

मूर्द्धा पर अग्नि स्फुलिंग धारित, नयनों में

करुणासागर उमड़े

उनके कंधों पर बैठे

शुक कथा बाँचते

उनके सामने शांत खड़ी मृत्यु

पूँछ हिलाता खड़ा हिम-व्याघ्र सा!

यही तो है हिमालय! स्वर्ग जाने की

रजत सीढ़ी; दुःख-मथित

हे हृदय, भारी व्यथाओ, विरह में

तप्त हे परित्यक्त नाते,

काल मिटाते हे शरीर, महा-

काल मिटाते हे मोह,

आओ, बुलाता है हिमालय! निःसंग

आर्द्रता में जीवन-चिता बुझाओ!

स्रोत :
  • पुस्तक : राधा कहाँ है (पृष्ठ 77)
  • रचनाकार : सुगतकुमारी
  • प्रकाशन : केरल हिंदी साहित्य मंडल प्रकाशन
  • संस्करण : 1996
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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