Font by Mehr Nastaliq Web

दुखी दिनों में

dukhi dinon mein

कुमार विकल

अन्य

अन्य

कुमार विकल

दुखी दिनों में

कुमार विकल

और अधिककुमार विकल

    दुखी दिनों में आदमी कविता नहीं लिखता

    दुखी दिनों में आदमी बहुत कुछ करता है

    लतीफ़े सुनाने से ज़हर खाने तक

    लेकिन वह कविता नहीं लिखता।

    दुखी दिनों में आदमी

    दिन की रोशनी में रोने के लिए अँधेरा ढूँढ़ता है

    और चालीस की उम्र में भी

    माँ की गोद जैसी

    कोई सुरक्षित जगह खोजता है।

    दुखी दिनों में आदमी बहुत कुछ सोचता है

    मसलन झील के पानी की गहराई

    और शहर की सबसे बड़ी इमारत की मंज़िलें

    और साथ ही साथ

    एक ख़ामोश भाषा में चीख़ता है

    कि उसके सारे प्रियजन

    झील पर एक मज़बूत बाँध बनकर खड़े हो जाएँ

    और इमारत में चलती लिफ़्ट को रोक लें

    लेकिन प्रियजन तो पेड़ होते हैं।

    छाया देते हैं

    हवा से दुलरा सकते हैं

    बाँध नहीं बन सकते।

    बाँध तो ख़ुद ही बनता है।

    दुखी दिनों में आदमी

    एक मज़बूत या कमज़ोर बाँध तो बनता है

    लेकिन कविता नहीं लिखता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संपूर्ण कविताएँ
    • रचनाकार : कुमार विकल
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
    • संस्करण : 2013

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए