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दस दरवाज़े हैं इस घर में

das darwaze hain is ghar mein

ध्रुव शुक्ल

अन्य

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ध्रुव शुक्ल

दस दरवाज़े हैं इस घर में

ध्रुव शुक्ल

ख़ुद को हिरासत में लेकर

घर में खोज रहा हूँ बंदीघर

कहाँ करूँ क़ैद ख़ुद को

ताला लगाऊँ किस दरवाज़े पर

दस दरवाज़े हैं इस घर में

कम नहीं हैं झरोखे भी

पता नहीं, कहाँ से निकल जाऊँ

कहाँ से लाऊँ इतने ताले

एक कमरा बंद करने से

बंद नहीं होता पूरा घर

ये घर ऐसा खुला हुआ है

भीतर-बाहर मिला हुआ है

मैंने इसे नहीं माँगा है

घर ऐसा ही मिला हुआ है

भीतर रहकर बाहर जाऊँ

बाहर रहकर भीतर आऊँ

मन को कहाँ बिठाऊँ

इतने खुले हुए इस घर में

बंदीघर कहाँ बनाऊँ

बेहद के इस घर में

कैसे क़ैद रहूँ?

क्या अपने मुँह पर ताला डालूँ,

आँख मूँद लूँ,

किसी बात पर कान धरूँ,

बैठा-बैठा हाथ मलूँ,

जो होता है, वो होने दूँ?

स्रोत :
  • रचनाकार : ध्रुव शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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