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माँ

man

पद्मा सचदेव

बुलाने के लिए कई नाम हैं

जिसे पुकारो बोलता भी है

पर एक नाम ऐसा है जिसे पुकारो तो

सब चौकन्ने हो जाते हैं

सभी सोचते हैं ये नाम मेरे लिए तो नहीं

माँ... माँ... माँ...

लड़के

बेटा

वह मेरी बेटी

कहाँ मर गई हो

माँ माँ माँ कहता जब कोई बच्चा

गली में से निकलता है

सड़क पार करता है

या पहाड़ चढ़ता है

पहाड़ उतरकर आँगन में खड़ा होता है

तब माँ एकदम सुबह के गुलाब की तरह

खिल उठती है

दोनों दरवाज़े थाम कर देखती है

गलियों में जाते, गुल्ली-डंडा घुमाते, गिट्टे उछालते

माँ माँ कहकर लिपट जाते हैं

माँ को सब एक तरह से ही बुलाते हैं

मधुरता में नहला कर, चाव से भर कर

ज़रा-सा डर कर आतुरता से

माँ... माँ... माँ

बछड़ा रंभाता है बां बां बां

गाय कई बार रस्सी तोड़ने का यत्न करती है

मालिक का कोई डर नहीं रहता

कोई भी उलझन हो, कोई भी ख़ुशी हो, कोई भी उम्र हो

कहता है माँ, माँ कहाँ हो तुम माँ

हाय बाप कोई नहीं कहता

स्रोत :
  • पुस्तक : बीरबहूटियाँ (पृष्ठ 20)
  • रचनाकार : पद्मा सचदेव
  • प्रकाशन : साहित्य भंडार
  • संस्करण : 2018

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