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अपराधबोध

apradhabodh

नित्यानंद गायेन

अन्य

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नित्यानंद गायेन

अपराधबोध

नित्यानंद गायेन

वे जो बहुत संवेदनशील लगते थे हमें

उनकी बनावटी संवेदनशीलता की बाहरी परत

अब उतर चुकी है

उनसे भूख

और लोगों की मौत पर

सवाल मत पूछिए

वे नाराज़ हो जाएँगे

मैंने भी पूछा था

सड़क पर मरते मज़दूरों के बारे में

कहा था उनसे—

आपकी बातों से पेट तो नहीं भरेगा!

उन्होंने मुझे बाहर धकेल दिया

एक अधेड़ उम्र की औरत

कमरा ख़ाली कर चली गई दो दिन पहले

फ़्लैट्स वाले बाबुओं ने उससे

अपने घरों में काम कराने से मना कर दिया

साइकिल पर कचौड़ी बेचने वाले एक पिता ने

गाँव जाकर ख़ुदकुशी कर ली

वह मुझे भी कवि कहता था

मैंने उसे कविता नहीं सुनाई

एक दिन कुछ पैसे देना चाहा

उसने मुस्कुराकर कहा था—

आपकी हालत तो मैं भी जानता हूँ

कमरे में आते-आते भीग गई थी मेरी आँखें

किंतु चीख़कर रो नहीं पाया था उस रात

उसे महामारी ने नहीं

उसे व्यवस्था और इस मुखौटाधारी समाज ने मारा है

एक साथी ने फ़ोन पर कहा—

पता नहीं आगे क्या करूँगा!

कोरोना मारेगा या ख़ुद ही मर जाऊँगा

लॉकडाउन में भूख तो नहीं रुकी

मौत भी नहीं रुकी

भूख से मेरे लोगों की सूची कहीं देखी है आपने

काम छूटने पर कमरा ख़ाली कर गई

औरत की मैंने कोई ख़बर नहीं ली

ख़ुदकुशी कर चुके उस कचौड़ी वाले के परिवार को

मैंने नहीं देखा!!

सड़क पर चलते हुए मारे गए

सैकड़ों मज़दूरों को बचाने के लिए

मैं कुछ नहीं कर पाया

अपने तमाम अपराधों में

मैं इसे भी शामिल करता हूँ

मजबूरी या विवशता कह कर इस अपराध से

मुक्त नहीं होना चाहता…

स्रोत :
  • रचनाकार : नित्यानंद गायेन
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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