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जंगल बनाम जंगल

jangal banam jangal

कुमार विकल

अन्य

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कुमार विकल

जंगल बनाम जंगल

कुमार विकल

और अधिककुमार विकल

    मैं इस इमारत के निकट से नहीं गुज़रूँगा

    इस इमारत में एक काला गैंडा रहता है

    जो मेरे शरीर की गंध पाकर बाहर निकल आएगा।

    मैं उससे बचने के लिए भागूँगा

    बेतहाशा दौडूँगा

    एक इमारत से दूसरी इमारत तक

    एक नगर से दूसरे नगर तक

    एक जंगल से दूसरे जंगल तक।

    सच कितना अजीब लगता है

    जब आदमी—

    शहरी इमारतों से भाग कर जंगल की ओर जाता है

    किंतु यह भी सच है

    कि सरकारी इमारतों में जो जंगल उग रहे हैं

    उनमें पुराने जंगलों से कहीं अधिक दहशत है

    और यह भी सच है

    कि इन जंगलों में काले गैंडों की एक नस्ल पैदा हो रही है

    और नई तरह के नरभक्षी वृक्ष उग रहे हैं

    जो आदमी को अपनी लपेट में नहीं लेते

    बल्कि जिनकी दहशत से रक्त-ताप बढ़ जाती है

    ब्रेन हेमरेज होते हैं

    और हृदय-गति रुक जाती है।

    एक मंज़िल से दूसरी मंज़िल की ओर

    सरकती हुई लिफ़्ट अचानक रुक जाती है।

    मुझे हर हालत में इस लिफ़्ट से बाहर रहना है

    और अपनी देह को उस हत्या से बचाना है

    जिसके बाद आदमी फ़ाइलों के धर्म तो निभाता है

    किंतु उसकी देह का हर धर्म छूट जाता है

    बहुत कुछ याद रहता है

    सिर्फ़ अपना नाम भूल जाता है

    नहीं मैं इस इमारत के निकट से नहीं गुज़रूँगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : निषेध (पृष्ठ 169)
    • संपादक : जगदीश चतुर्वेदी
    • रचनाकार : कुमार विकल
    • प्रकाशन : ज्ञान भारती प्रकाशन
    • संस्करण : 1972

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