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क्या किसी और अनहोनी का इंतज़ार है

kya kisi aur anhoni ka intzar hai

नवल शुक्ल

अन्य

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नवल शुक्ल

क्या किसी और अनहोनी का इंतज़ार है

नवल शुक्ल

और अधिकनवल शुक्ल

    पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है

    भारतीय सड़कों पर आपदा की आड़ में

    नियोजित यातना को पैदल चलते हुए देख रहा है

    कि लोकतांत्रिक ढाँचे में

    कितनी सहज हो सकती है लोगों की बेदख़ली

    जिसे कुछ घंटों मे रचा जा सकता है।

    सबसे बड़े लोकतंत्र की सड़कों पर

    पहली बार चल रहे हैं इतने पैर

    इतने शरीर और इतने दुख

    पहली बार अपनी भूमि पर पीढ़ियों से अर्जित

    विश्वास, संवेदना और सब्र

    घिसी हुई चप्पलों की तरह टूट रहे हैं, छूट रहे हैं

    गुमसुम और बेदम हैं बाध्यकारी आवाज़ें

    ज़मीन पर पहली बार ऐसा सन्नाटा है।

    प्रतिनिधि निश्चिंत हैं कि सड़कों पर

    पथराए पैरों और फफकते लोगों के नहीं बचते हैं निशान

    वे इत्मीनान में हैं कि कल्पना से अधिक

    सूखे कंठ और फफोले के साथ

    विलाप और आर्तनाद के चेहरे

    महीनों से चुपचाप चले जा रहे हैं

    कुछ समय में ख़ाली हो जाएँगे राष्ट्रीय मार्ग।

    अन्यायी उत्सुकता से देख रहे हैं

    पहली बार प्राप्त इन आँकड़ों को सहेजते हुए

    कि करोड़ों लोगों के संघर्षशील समाज को

    बिना आहट, बिना किसी ख़ूबी के

    विपन्न समाज में बदला जा सकता है

    जिसे जायज़, ज़रूरी और त्वरित कार्रवाई कहते हुए

    दमदारी से हद दर्जे का सच भी कहा जा सकता है।

    मनुष्यों पर प्रयोग के इस नाज़ुक समय में

    जब व्यवस्थाएँ निर्णायक होने की दौड़ में हैं

    मनुष्य की कोशिकाओं में प्रवेश के लिए अधीर

    और स्वाधीन चेतना पर नियंत्रण के लिए तत्पर

    तब करोड़ों लोगों का चुपचाप चलना

    और करोड़ों लोगों का चुपचाप देखते रहना

    किसके हक़ में है?

    यह सहज स्वीकार है या प्रतिरोध

    क्या किसी और अनहोनी का इंतज़ार है?

    स्रोत :
    • पुस्तक : नया ज्ञानोदय (अप्रैल-जुलाई 2020) (पृष्ठ 53)
    • संपादक : मधुसूधन आनंद
    • रचनाकार : नवल शुक्ल
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ

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