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जलावतन तलाशता है राह अपनी

jalavtan talashta hai raah apni

महमूद दरवेश

अन्य

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महमूद दरवेश

जलावतन तलाशता है राह अपनी

महमूद दरवेश

और अधिकमहमूद दरवेश

    लेता है जाइज़ा आसपास का जलावतन

    कि राह कौन-सी पकड़नी

    यादें और अल्फ़ाज़ साथ छोड़ जाते हैं

    अगवाह उसको अगवाह नहीं

    पिछवाह नहीं पिछवाह

    एक रौशन निशान दाएँ

    दूसरा बाएँ

    पूछता है वो ख़ुद से :

    शुरू कहाँ होती है ज़िंदगानी?

    चाहिए एक ख़ुशफ़हम मुझे

    हो सकूँ ताकि ख़ुदमुख़्तार अपनी परछाई का!

    और कहता है : वही है आज़ाद शख़्सियत का मालिक

    चुनता है जो इस या उस वजह से अपनी जलावतनी

    लिहाज़ा मैं आज़ाद हूँ

    चलते ही जाना है

    रास्ता ख़ुद ख़ुद हमवार होता जाएगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 345)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक सुरेश सलिल, कैथराइन कोहैम
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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