Font by Mehr Nastaliq Web

पाप से अछूती देवी नहीं, करुणा से पवित्र हुई पापिनी!

सोन्या!

वह जैसे ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ के उजाड़ नैतिक दृश्य से एक विसंगति रखती है। वह किसी आदर्श प्रतिमा की तरह नहीं गढ़ी गई है, बल्कि एक जीवित विडंबना है। कैसी स्त्री जो अँधेरे में दीप्त होती है!

आलोचक कहते आए हैं कि दोस्तोयेवस्की की नैतिक दृष्टि इन्हीं द्वंद्वों पर अस्तित्व बुनती है, जहाँ पाप और अनुग्रह की सीमाएँ पीड़ा की भट्ठी में घुल जाती हैं। ग़रीबी और शर्म से ढला उसका जीवन इच्छा का नहीं, विवशता का प्रत्युत्तर है। वेश्यावृत्ति उस पर थोपी गई है, लेकिन यह उसकी नैतिक असफलता नहीं, उसका नैतिक बलिदान है। दया-रिक्त संसार में वह दूसरों के लिए स्वयं को नष्ट कर रही है। वह शुचिता की परिभाषा को चुनौती दे रही है, जहाँ शुचिता पाप से दूरी में नहीं, बल्कि पाप के बीच प्रेम करने की क्षमता में है।

रूसी ओर्थोडॉक्स ईसाइयत से संबद्ध दोस्तोयेवस्की के विश्व-दर्शन में पीड़ा मुक्ति का मार्ग रचती है। बेर्दायेव ने इसकी पुष्टि में ही पीड़ा के विचार को दोस्तोयेवस्की के धार्मिक मानवविज्ञान के केंद्र में देखा होगा जहाँ मनुष्य पीड़ा के माध्यम से ही ईश्वरीय प्रेम से अवगत होता है। इस विचार की देहधारिता फिर सोन्या में हुई है। उसका दुःख रस्कोलनिकोव या काटरीना इवानोव्ना के दुःख से विलग है। उसका दुःख करुणा का चुना हुआ दुःख है। वह पहले परिवार के पापों का भार उठाती है और फिर रस्कोलनिकोव के अपराध का। उसकी सहिष्णुता में दोस्तोयेवस्की की युगीन नैतिक गणनाएँ व्युत्क्रमित हो रही हैं। एक पतिता अनुग्रह का पात्र बन गई है और ‘असाधारण मनुष्य’ द्वारा नैतिक सीमाएँ लाँघ सकने का बुद्धिवादी तर्क रखने वाला नायक नैतिक ‘नाइलीज़्म’ के गर्त में गिर गया है। गॉस्पेल का सूत्र—“द लास्ट शैल बी फ़र्स्ट”—सोन्या के जीवन को नियत कर रहा है, जहाँ उसका आत्म-विलोपन उसकी दुर्बलता नहीं, शक्ति है। उसकी अपमानजनक सामाजिक स्थिति उसकी जीत में बदल रही है।

बाख़्तिन पर यक़ीन करें तो दोस्तोयेवस्की के पात्र वे ‘डायलॉजिक’ प्राणी हैं जो अपनी अस्मिता किसी नैतिक ‘अन्य’ से मुठभेड़ में पाते हैं। इस तरह फिर सोन्या, रस्कोलनिकोव की डायलॉजिक विलोम है, उसकी मौन प्रतिध्वनि, जैसे एक दर्पण, उसकी अंतरात्मा। उसी के माध्यम से वह अपने बुद्धिजीवी अहंकार की शून्यता और आत्मा के पुनर्जागरण की संभावना को देख पाता है।

रस्कोलनिकोव का अपराध केवल हत्या में नहीं, स्वयं को नैतिक विधानकर्ता मानने की दार्शनिक घोषणा में भी है। वह ‘नेपोलियनिक’ धारणा रखता है कि कुछ मनुष्य महान् प्रयोजन के लिए नैतिक सीमाएँ लाँघ सकते हैं। यह प्रेम से रहित बुद्धि का अधर्म है। सोन्या का अस्तित्व मात्र इस विचार को नकार देता है। उसका जीवन इस अर्थ में अव्यावहारिक है कि स्वयं प्रेम ही अव्यावहारिक है, जहाँ वह किसी गणना के बिना बलिदान करती है, प्रमाण के बिना विश्वास और शर्त के बिना क्षमा। वह दृश्य, जब रस्कोलनिकोव उसे लाज़रस की कथा पढ़ने को कहता है, दोस्तोयेवस्की की पुनरुत्थान-दृष्टि का सार प्रकट करता है। वह वाचन प्रतीक में नहीं, संस्कार में घटित होता है। सोन्या की काँपती आवाज़ दिव्य रहस्योद्घाटन की शक्ति रखती है, उसकी श्रद्धा वह माध्यम बन जाती है, जिससे शब्द रस्कोलनिकोव की जड़ आत्मा में उतरते है। मसीह द्वारा लाज़रस को पुनः जीवित कर देने का का चमत्कार जैसे उसके क़ब्र में नहीं, रस्कोलनिकोव के हृदय में घटित हुआ। सोन्या न उपदेश देती है, न तर्क । वह जो मानती है, उसी में जीती है। उसकी श्रद्धा निराशा से उपजी है, इसलिए वह किसी भी मत से गहरी है—अस्तित्व की जड़ में स्पंदित। वह बुदबुदाती है कि “ईश्वर हमारा साथ नहीं छोड़ेगा” तो यह कोई सांत्वना नहीं, अस्तित्व की निश्चितता तय की जा रही है। दोस्तोयेवस्की अपनी इस स्त्री के माध्यम से जीती-जागती आस्था की विजय को अमूर्त तर्क पर प्रत्यक्ष कर देने की इच्छा रखते हैं।

विचार यह भी है कि दोस्तोयेवस्की की स्त्रियाँ प्रायः आदर्श और समर्पण के बीच झूलती दिखाई देती हैं। उनके यहाँ स्त्रीत्व का सिद्धांत विनम्रता, समानुभूति और और सहभागिता से जुड़ा हुआ है, जो आधुनिक मनुष्य के आत्मकेंद्रित अहं को तोड़ते हैं। यह ‘ईसाई प्रेम का शाश्वत स्त्रीत्व’ है, एक ऐसी शक्ति जो विजय नहीं, करुणा के द्वारा उद्धार करती है। किंतु, सोन्या न तो दमित पीड़िता है, न ही पवित्र देवी—वह एक सशक्त नैतिक अस्तित्व है। उसका स्त्रीत्व निष्क्रिय नहीं, वह एक द्वार है जिससे अनुग्रह पुरुष के गर्व और एकांत में प्रवेश करता है। उसका मौन प्रेम, जो रस्कोलनिकोव का पीछा साइबेरिया तक करता है, पराए अपराध के शर्तहीन स्वीकार के रूप में नैतिक साहस का चरम है। उसका प्रेम ‘केनोटिक’ है—स्वयं को त्याग देने वाला, जैसे मसीह ने स्वयं को मानव पीड़ा में उतार लिया था। वह न रस्कोलनिकोव को सुधारती है, न उसकी निंदा करती है, बस साथ चलती है। उसका होना भर रस्कोलनिकोव में पश्चाताप का बीज बो देता है। वह दृश्य, जब वह उसके पैरों पर रो पड़ता है, कोई भावुक उपसंहार नहीं, आत्मा का पुनर्जन्म है।

साइबेरियाई उपसंहार में ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ के अंत पर आलोचकों में विवाद रहा है। नाबोकोव इसे नैतिक उपदेश कहकर ठुकराते हैं तो फ्रैंक और बाख़्तिन इसे दोस्तोयेवस्की की पुनर्जन्म संबंधी दृष्टि के लिए आवश्यक मानते हैं। किंतु चाहे जो भी व्याख्या हो, उस अंतिम अंश का संवेगात्मक केंद्र सोन्या ही तो है। वह रस्कोलनिकोव से मिलने कारा शिविर में आई है और उसके क्रमिक पुनर्जागरण की वाहक बन गई है। उनके बीच जो घटित हो रहा है, वह भावुक परिवर्तन नहीं, अस्तित्व का रूपांतरण है। दोस्तोयेवस्की मुक्ति को संबंधात्मक अर्थ में देखते हैं, जो आत्माओं के बीच घटित होती है। सोन्या का प्रेम रस्कोलनिकोव को मानवीय एकात्म का वह रहस्य दिखाता है, जिसे उसके अपराध ने नकार दिया था। जब वह उसके प्रेम को स्वीकार करता है, वह मानवता को भी स्वीकार करता है। इस तरह, कथानक एकांत से संवाद, विचार से जीवन और अपराध से स्वीकारोक्ति की ओर बढ़ता है। लेव शेस्टोव ने यदि दोस्तोयेवस्की की आस्था को ‘असंभव की आस्था’ कहा था—ऐसा विश्वास कि सबसे हीन स्थिति में भी अनुग्रह का प्रकाश फूट सकता है, तो सोन्या उस असंभव आस्था की प्रतिमा है। वह प्रमाण है कि कोई भी मनुष्य, किसी भी पतित अवस्था में क्यों न हो, उद्धार पा सकता है।

सोन्या फिर दोस्तोयेवस्की के नैतिक ब्रह्मांड के केंद्र में है। वह आधुनिक निराशा के अँधेरे में दीप्त श्रद्धा की शांत आकृति है। वह बुद्धि की नहीं, प्रेम की नायिका है—वह पाप से अछूती देवी नहीं, करुणा से पवित्र हुई पापिनी है। उसके माध्यम से दोस्तोयेवस्की अपना यह गहन विश्वास प्रकट करते हैं कि मुक्ति न बुद्धि का फल है, न न्याय का, बल्कि उस प्रेम का जो सहता है और क्षमा करता है। सोन्या की श्रद्धा में दोस्तोयेवस्की को नाइलिज़्म का उत्तर मिल जाता है। संसार तर्कहीन, अन्यायपूर्ण और निर्दय हो सकता है, फिर भी उसी अव्यवस्था में अनुग्रह का प्रकाश अविनाशी रूप से जलता रहता है। सोन्या का मौन-अडिग प्रेम कठोर साइबेरिया को भी आशा और उद्धार की दहलीज़ बना देता है।

यदि ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ का अंतिम संदेश यह है कि सबसे गहरी निराशा और पतन में ही प्रकाश सबसे अधिक उज्ज्वल दिखाई देता है तो सोन्या का प्रेम वह प्रकाश है—उज्जवल, दीप्त।


•••

शायक आलोक को और पढ़िए : कामू-कमला-सिसिफ़स

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

25 अक्तूबर 2025

लोलिता के लेखक नाबोकोव साहित्य-शिक्षक के रूप में

25 अक्तूबर 2025

लोलिता के लेखक नाबोकोव साहित्य-शिक्षक के रूप में

हमारे यहाँ अनेक लेखक हैं, जो अध्यापन करते हैं। अनेक ऐसे छात्र होंगे, जिन्होंने क्लास में बैठकर उनके लेक्चरों के नोट्स लिए होंगे। परीक्षोपयोगी महत्त्व तो उनका अवश्य होगा—किंतु वह तो उन शिक्षकों का भी

06 अक्तूबर 2025

अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव

06 अक्तूबर 2025

अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव

एक पहलवान कुछ न समझते हुए भी पाँड़े बाबा का मुँह ताकने लगे तो उन्होंने समझाया : अपने धर्म की व्यवस्था के अनुसार मरने के तेरह दिन बाद तक, जब तक तेरही नहीं हो जाती, जीव मुक्त रहता है। फिर कहीं न

27 अक्तूबर 2025

विनोद कुमार शुक्ल से दूसरी बार मिलना

27 अक्तूबर 2025

विनोद कुमार शुक्ल से दूसरी बार मिलना

दादा (विनोद कुमार शुक्ल) से दुबारा मिलना ऐसा है, जैसे किसी राह भूले पंछी का उस विशाल बरगद के पेड़ पर वापस लौट आना—जिसकी डालियों पर फुदक-फुदक कर उसने उड़ना सीखा था। विकुशु को अपने सामने देखना जादू है।

31 अक्तूबर 2025

सिट्रीज़ीन : ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

31 अक्तूबर 2025

सिट्रीज़ीन : ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

सिट्रीज़ीन—वह ज्ञान के युग में विचारों की तरह अराजक नहीं है, बल्कि वह विचारों को क्षीण करती है। वह उदास और अनमना कर राह भुला देती है। उसकी अंतर्वस्तु में आदमी को सुस्त और खिन्न करने तत्त्व हैं। उसके स

18 अक्तूबर 2025

झाँसी-प्रशस्ति : जब थक जाओ तो आ जाना

18 अक्तूबर 2025

झाँसी-प्रशस्ति : जब थक जाओ तो आ जाना

मेरा जन्म झाँसी में हुआ। लोग जन्मभूमि को बहुत मानते हैं। संस्कृति हमें यही सिखाती है। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर है, इस बात को बचपन से ही रटाया जाता है। पर क्या जन्म होने मात्र से कोई शहर अपना ह

बेला लेटेस्ट

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए