अमृतलाल नागर की कहानियाँ
एटम बम
चेतना लौटने लगी। साँस में गंधक की तरह तेज़ बदबूदार और दम घुटाने वाली हवा भरी हुई थी। कोबायाशी ने महसूस किया कि बम के उस प्राण-घातक धड़ाके की गूँज अभी-भी उसके दिल में धँस रही है। भय अभी-भी उस पर छाया हुआ है। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा है। उसे साँस
दो आस्थाएँ
1 अरी कहाँ हो? इन्दर की बहुरिया!—कहते हुए आँगन पार कर पंडित देवधर की घरवाली सँकरे, अँधेरे, टूटे हुए ज़ीने की ओर बढ़ी। इन्दर की बहू ऊपर कमरे में बैठी बच्चे का झबला सी रही थी। मशीन रोककर बोली—आओ, बुआजी, मैं यहाँ हूँ।—कहते हुए वह उठकर कमरे के दरवाज़े तक
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere