अमृतलाल नागर के संस्मरण
रससिद्ध कवीश्वर:सनेही जी
अख़बारों में आचार्य सनेही जी के अस्वस्थ होकर अस्पताल में भरती किए जाने का समाचार पढ़ा। जी चाहा कि जाकर उनके दर्शन कर आऊँ पर 'गृह कारज नाना जजाला' में फँसकर घर से दो क़दम दूर कानपुर तो न जा पाया, हाँ कार्यवशात् दो दिनों के लिए दिल्ली ज़रूर पहुँच गया।
प्रसाद: जैसा मैंने पाया
प्रसादजी से मेरा केवल बौद्धिक संबंध ही नहीं, हृदय का नाता भी जुड़ा हुआ है। महाकवि के चरणों में बैठकर साहित्य के संस्कार भी पाए हैं और दुनियादारी का व्यावहारिक ज्ञान भी। पिता की मृत्यु के बाद जब बनारस में उनसे मिला था, तब उन्होंने कहा था,
महादेवी ते मिले हो?
काव्य व्यक्तित्व के अतिरिक्त महादेवीजी के दर्शन भी पहले मुझे ‘चाँद’ ही के माध्यम से हुए थे। एक चित्र की स्मृति अब तक सजीव है, महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान और चंद्रावती लखनपाल का चित्र छपा था। यह त्रिपुटी उन दिनों बहुत प्रसिद्ध थी। चंद्रावती जी
हिंदी के एक रूपदाता : रूपनारायण पांडेय
रूपनारायण जी पांडेय को याद करते हुए स्वाभाविक रूप से भाषा की समस्या वाली बात मन में उनके लखनवी होने के कारण ही उभर आई। लखनऊ खड़ी बोली के उर्दू रूप का जाना माना गढ़ था। वहाँ जिन लोगों में 'अच्छी-ख़ासी मीठी ज़ुबान को संस्कृत शब्दों से 'बदसूरत बनाने की
संपादकाचार्य अंबिकाप्रसाद वाजपेयी
21 मार्च सन् 1968 की शाम को साढ़े सात बजे पं. अंबिकाप्रसाद वाजपेयी के स्वर्गवास के साथ ही साथ तपस्वी साहित्यकारों एवं पत्रकारों की महान पीढ़ी की अंतिम कड़ी लुप्त हो गई। पिछले 30 दिसंबर को उनके 88वें जन्म-दिवस पर हम लोग सदा की भाँति उनके चरण स्पर्श करने
शरत के साथ बिताया कुछ समय
याद आता है, स्कूल-जीवन में, जब से उपन्यास और कहानियाँ पढ़ने का शौक़ हुआ, मैंने शरत बाबू की कई पुस्तकें पढ़ डालीं। एक-एक पुस्तक को कई-कई बार पढ़ा और आज जब उपन्यास अथवा कहानी पढ़ना मेरे लिए केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं, वरन् अध्ययन का प्रधान विषय
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere