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अखिलेश सिंह

1990 | फ़ैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश

नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक।

नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक।

अखिलेश सिंह के बेला

03 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : अब घंटे चतुर्दिक बज रहे हैं

बिंदुघाटी : अब घंटे चतुर्दिक बज रहे हैं

• नशे की वजह से कभी-कभार थोड़ा बहुत ग़ुस्सा बन जाता है और आपसी चिल्प-पों के बाद ऊपर आसमान में गुम हो जाता है। इस नशे की स्थिति में ऐसा भी लगता है कि हम सजग हो गए हैं। साहित्य के सन्वीक्षा-संसार में

13 जुलाई 2025

बिंदुघाटी : वाचालता एक भयानक बीमारी बन चुकी है

बिंदुघाटी : वाचालता एक भयानक बीमारी बन चुकी है

• संभवतः संसार की सारी परंपराओं के रूपक-संसार में नाविक और चरवाहे की व्याप्ति बहुत अधिक है। गीति-काव्यों, नाटकों और दार्शनिक चर्चाओं में इन्हें महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।  आधुनिक समाज-विज्ञान

29 जून 2025

‘बिंदुघाटी’ पढ़ते तो पूछते न फिरते : कौन, क्यों, कहाँ?

‘बिंदुघाटी’ पढ़ते तो पूछते न फिरते : कौन, क्यों, कहाँ?

• उस लड़की की छवि हमेशा के लिए स्टीफ़न की आत्मा में बस गई, और फिर उस आनंद में डूबा हुआ पवित्र मौन किसी भी शब्द से नहीं टूटा...  आप सोच रहे होंगे कि यहाँ किसी आशिक़ की किसी माशूक़ के लिए मक़बूलियत की बा

15 जून 2025

बिंदुघाटी : करिए-करिए, अपने प्लॉट में कुछ नया करिए!

बिंदुघाटी : करिए-करिए, अपने प्लॉट में कुछ नया करिए!

• अवसर कोई भी हो सबसे केंद्रीय महत्व केक का होता है। वह बिल्कुल बीचोबीच होता हुआ, फूला हुआ, चमकता हुआ, अकड़ा हुआ, आकर्षित करता हुआ रखा होता है।  वह एक विचारहीन प्रविष्टि के रूप में हर जगह आवश्यक बन

01 जून 2025

बिंदुघाटी : ‘ठीक-ठीक लगा लो’ कहना मना है

बिंदुघाटी : ‘ठीक-ठीक लगा लो’ कहना मना है

• मैं भ्रम की चपेट में था कि फ़ेसबुक और वहाँ के विमर्शों की दुनिया ही अब एकमात्र रह गई है। इसमें जो कुछ छूट गया है—वह भी धीरे-धीरे इसका ही हिस्सा हो जाएगा। जब गत चार साल से मेरे फ़ेसबुकिया संक्रमण में

18 मई 2025

बिंदुघाटी : क्या किसी का काम बंद है!

बिंदुघाटी : क्या किसी का काम बंद है!

• जाते-जाते चैत सारी ओस पी गया। फिर सुबह की धरणी में मद महे महुए मिलने लगे। फिर जाते वैशाख वे भी विदा हुए। पाकड़ हों या पीपर, उनके तले गूदों से पटे पड़े हैं। चिड़ियों को चहचहाने के लिए और क्या चाहिए! भर

04 मई 2025

बिंदुघाटी : कविताएँ अब ‘कुछ भी’ हो सकती हैं

बिंदुघाटी : कविताएँ अब ‘कुछ भी’ हो सकती हैं

यहाँ प्रस्तुत इन बिंदुओं को किसी गणना में न देखा जाए। न ही ये किसी उपदेश या वैशिष्ट्य-विधान के लिए प्रस्तुत हैं। ऐसे असंख्य बिंदु संसार में हर क्षण पैदा हो रहे हैं। उनमें से कम ही अवलोकन के वृत्त में

19 फरवरी 2025

दुखी दादीबा और भाग्य की विडंबना

दुखी दादीबा और भाग्य की विडंबना

यह पुस्तक पारसी समुदाय के वैभवशाली जीवन की कथा है और लेखक द्वारा इसके किसी सच्चे जीवन वृत्तांत पर आधृत होने का दावा भी जगह-जगह पर मिलता है। यह बहुत पुरानी रचना है, संभवतः 20वीं सदी के शुरुआत की। इसका

20 जनवरी 2025

सीधे कहानी में ले जाने वाली कहानियाँ

सीधे कहानी में ले जाने वाली कहानियाँ

दामोदर मावज़ो ज्ञानपीठ और साहित्य अकादेमी—भारतीय साहित्य के दोनों बड़े सम्मानों से सम्मानित कथाकार हैं। देश में गिनती के लेखक-कथाकार ही इस तरह अलंकृत हुए होंगे। वह गोवा में पैदा हुए और कोंकणी में लिखते

17 दिसम्बर 2024

सदा रहने वाली चीज़ों की किताब

सदा रहने वाली चीज़ों की किताब

‘द बुक ऑफ़ एवरलास्टिंग थिंग्स’ लाहौर के विज परिवार के साथ बीसवीं सदी की शुरुआत से शुरू होती है। इसके शुरुआत में ही स्वदेशी आंदोलन का कपड़ा व्यवसायियों पर पड़ने वाला प्रभाव, प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय स

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हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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