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कृष्ण बिहारी मिश्र

1936 - 2023 | बलीहार, उत्तर प्रदेश

सुपरिचित लेखक। निबंध, पत्रकारिता-लेखन, संस्मरण और अनुवाद में योगदान।

सुपरिचित लेखक। निबंध, पत्रकारिता-लेखन, संस्मरण और अनुवाद में योगदान।

कृष्ण बिहारी मिश्र के उद्धरण

खनखनाते हुए मणिमय मुक्ताहार, सोने के नूपुर, कुंकम के अंगराग, सुगंधित पुष्प, विचित्र मालाएँ, रंगबिरंगे वस्त्र—इन सब चीज़ों की मूर्खों ने नारी में कल्पना कर ली है किंतु भीतर-बाहर विचारने वालों के लिए तो स्त्रियाँ नरक ही हैं।

श्रृंगार जिनका प्रधान है, ऐसे काम के मित्रगण नारी को जीतने से जीत लिए जाते हैं।

मोहित करती हैं, मदयुक्त बनाती हैं, उपहास करती हैं भर्त्सना करती हैं, प्रमुदित करती हैं, दुःख देती हैं। ये स्त्रियाँ पुरुषों के दयामय हृदयों में प्रवेश कर क्या नहीं करती हैं?

शास्त्रों के द्वारा प्रदत्त विवेक विद्वानों के मन में तभी तक प्रभाव दिखलाता है, जब तक वह कमलनयनी सुंदरियों के नेत्रबाणों का शिकार नहीं बनता।

मित्रों का हृदय अनिष्ट की आशंका ही किया करता है।

शांत, अनंत, अद्वितीय, अजन्मा, ज्योति को उस-उस गुण के प्रकाश से ब्रह्मा, विष्णु, शिव ऐसे अनेक प्रकार से कहा जाता है। भिन्न-भिन्न तथा अनेक पथों में गतिशील शास्त्रों के द्वारा वही एक ईश्वर कहा जाता है जैसे भिन्न-भिन्न तथा अनेक पथों में गतिशील जल-प्रवाह समुद्र में ही गिरते हैं।

छोटा सा काँटा चरण को उद्विग्न कर देता है।

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