ये दीप, ये शंख
इसी आत्मा की आरती के ये हैं कुछ दीप, ये है कुछ शंख। दीप तो जलता है अँधेरे में कि हम देख सकें, पर क्या देख सकें? कहाँ निशा का दिग्दिगंतव्यापी अंधकार और कहाँ दीप का दो-चार गज पर ही टूट जाने-वाला प्रकाश? हम क्या देख सकें; बस यही कि अंधकार महान् है और प्रकाश