मातृभाषा पर दोहे
मातृभाषा किसी व्यक्ति
की वह मूल भाषा होती है जो वह जन्म लेने के बाद प्रथमतः बोलता है। यह उसकी भाषाई और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का अंग होती है। गांधी ने मातृभाषा की तुलना माँ के दूध से करते हुए कहा था कि गाय का दूध भी माँ का दूध नहीं हो सकता। कुछ अध्ययनों में साबित हुआ है कि किसी मनुष्य के नैसर्गिक विकास में उसकी मातृभाषा में प्रदत्त शिक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इस चयन में मातृभाषा विषयक कविताओं को शामिल किया गया है।
सहजहि जौ सिखयो चहहु, भाइहि बहु गुन भाय।
तौ निज भाषा मैं लिखहु, सकल ग्रंथ हरखाय॥
बोली हमारी पूर्व की, हमें लखै नहिं कोय।
हमको तो सोई लखै, जो धुर पूरब का होय॥
दई छाँड़ि निज सभ्यता, निज समाज, निज राज।
निज भाषाहूँ त्यागि तुम, भये पराये आज॥
निज भाषा, निज भाव, निज असन-बसन, निज चाल।
तजि परता, निजता गहूँ, यह लिखियौ, बिधि! भाल॥
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere