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पूँजीवाद पर उद्धरण

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बुद्धि जो कि अलिप्त, निर्मम, स्व-पर-निरपेक्ष कही जाती है, उसी के क्षेत्र में इतनी आत्म-केंद्रिता का विकास—पूँजीवादी समाज की विशेषता है। फिर साहित्य और कला का क्या कहना।

गजानन माधव मुक्तिबोध
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पूँजीवाद एक बार सुप्रतिष्ठित हो जाने पर सांस्कृतिक क्षेत्र में सबसे पहले कविता पर हमला करता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध
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पूँजीवाद कवियों को वह विश्व-दृष्टि और विश्व-स्वप्न रखने ही नहीं देता कि जो दृष्टि या जो स्वप्न, जीवन-जगत् की व्याख्या और उसकी विकासमान प्रक्रिया के आभ्यंतरीकरण से उत्पन्न होता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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