निज आनंद म्हें ओळख्यौ है जी

nij aanand mhaen olkhyaa hai jii

बाबा रामदेव

बाबा रामदेव

निज आनंद म्हें ओळख्यौ है जी

बाबा रामदेव

निज आनंद म्हें ओळख्यौ है जी,

ऊग्यौ सहजै सूर॥

वचन बुद्धि सूं पार है जी,

इसड़ो अद्भुत नूर।

कलम क्रिया पहुंचे नई जी,

लिखूं तो होय कूड़॥

जप तप उणनै लागे नई जी,

मुगति रहत मंजूर।

करम क्रिया सारा थाक गया जी,

हुय गया चकनाचूर॥

बाहर खोजतां घर में मिल गया जी,

बाज्या म्हारे अनहद नूर।

साच कहूं म्हे सांसा मिटग्या है जी,

ऊगी म्हारै ग्यान अंकूर॥

वारी हो वारी बालीनाथजी,

म्हे तो परस्या जरूर।

रामदेव परचो पायौ है जी,

सब में समाया पूरमपूर॥

जब आत्मज्ञान का सूर्योदय हुआ, तब मैंने अपने 'स्व' रूप को पहचाना। यही मेरा आत्म-स्वरूप मन, बुद्धि और वचन का विषय नहीं है। यह ऐसा अद्भुत तेज का पुंज है। लिख कर भी इसका स्वरूप नहीं समझाया जा सकता, इसके विषय में कुछ लिखूँ तो वह लेखन मिथ्या होगा। जप-तप से भी उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता, उसकी प्राप्ति तो मुक्तात्मा ही कर सकती है। विविध प्रकार कर्मकांड तो उसकी प्राप्ति हेतु सामर्थ्य-हीन सिद्ध हुए। बाह्य क्रियाओं द्वारा उसकी प्राप्ति नहीं हो सकती, वह तो घट में ही है। मुझे अनाहत नाद सुनाई दिया। ज्यों ही मेरे हृदय में आत्म-ज्ञान का अंकुर निकला त्योंही समस्त संशय समाप्त हो गए और संशय के मिटते ही परब्रह्म की प्राप्ति हो गई। रामदेवजी कहते हैं कि हे मेरे गुरु बालीनाथजी! मैं आप पर निछावर हूँ। यह गुरु कृपा का ही चमत्कार है कि संपूर्ण ब्रह्मांड में समाविष्ट पूर्ण परमात्मा का मुझे साक्षात्कार हो गया।

स्रोत :
  • पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 98)
  • संपादक : सोनाराम बिश्नोई
  • रचनाकार : बाबा रामदेव
  • प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
  • संस्करण : 2015
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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