कारीगर धन चेजारा भारी
karigar dhan chejara bhari
कारीगर धन चेजारा भारी।
धरा गिगन चंदा सूरज रचिया रचदी रचना सारी॥
लख चौरासी जूणी रच दी देखा न्यारी-न्यारी।
नर-नारी को आप बणावे आप पुरुष नहीं नारी॥
रामचंद्र कई किरोड़ों हो गए किरोड़ों कृष्ण मुरारी।
तेरा भेद वाहीं नहीं पाया तू तो अथग अपारी॥
वेद कतेब पार नहीं पावे कुदरत कला तुमारी॥
काजी पंडित रीता जावे देवी-देवता हारी॥
अनघड़ अलख लख्यो नहीं जावे अमरदेव निराकारी।
लाधूनाथ आत्मा खोजी सत का शब्द पुकारी॥
- पुस्तक : लाधूनाथ वाणी प्रकाश (पृष्ठ 474)
- रचनाकार : संत लाधूनाथ
- प्रकाशन : महन्त श्री गणेश नाथ जी
- संस्करण : 2001
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