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जग में संत भये कैसे भारी

jag me.n sa.nt bhaye kaise bhaarii

दरिया (बिहार वाले)

अन्य

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दरिया (बिहार वाले)

जग में संत भये कैसे भारी

दरिया (बिहार वाले)

और अधिकदरिया (बिहार वाले)

    जग में संत भये कैसे भारी।

    काट कुश बनराव सहतु है संत सहैं जग गारी॥

    जैसे समुद्र सकल जल निजवे संतन गमि विचारी।

    जैसे हीरा सहै घन चोटहिं कबहीं लागत कारी॥

    बुंद अघात सहै गिरि जैसे संत धक्का निरुआरी।

    कहे ‘दरिया' सिरताज सोई है ताकी मैं बलिहारी॥

    संसार में कैसे-कैसे महान संत हुए हैं। जिस प्रकार शेर जंगल में नुकीले झाड़ों और काँटों को सहन करता है, उसी प्रकार संतों ने दुनिया की गालियों और अपमान को सहन किया है। जिस प्रकार समुद्र सारे पानी को अपने अंदर पचा लेता है, संतों की पहुँच के बारे में भी उसी प्रकार विचार करना चाहिए। अर्थात् अपार पहुँच होने के बावजूद वे अपने अनुभव को अंतर में पचा लेते हैं। जैसे हीरा घन की चोट को सहन करता है और कभी भी मलीन नहीं होता, जैसे पर्वत वर्षा की बूँदों की चोट सहन करते हैं; उसी प्रकार संत भी दुनियादारों के आघात को बिना परवाह किए बरदाश्त करते हैं। दरिया साहिब कहते हैं कि ऐसे संत संसार के सरताज हैं, मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत दरिया (बिहार वाले) (पृष्ठ 282)
    • संपादक : काशीनाथ उपाध्याय
    • रचनाकार : संत दरिया (बिहार वाले)
    • प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास, पंजाब
    • संस्करण : 2016

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