Font by Mehr Nastaliq Web

हउमै नावै नालि विरोधु है

ha.umai naavai naali virodhu hai

गुरु अमरदास

अन्य

अन्य

गुरु अमरदास

हउमै नावै नालि विरोधु है

गुरु अमरदास

और अधिकगुरु अमरदास

    हउमै नावै नालि विरोधु है, दुइ बसहि इकठाइ।

    हउमै बिचि सेवा होवई, तामनु बिरथा जाइ॥

    हरि चेति मन मेरे तू गुर कै सबदु कमाइ।

    हुकमि मंनहि ता हरि मिलै, ता बिचहु उहमै जाइ॥रहाउ॥

    हउमै सभु सरीरु है, हउमै उतपति होइ।

    हउमै बड़ा गुवारु है, उहमै बिचि बूझि सकै कोइ॥

    हउमै बिचि भगति होवई, हुकमु बूझिआ जाइ।

    हउमै बिचि जीउ बंधु है, नामु बसै मनि आइ॥

    नानक सतगुरि मिलिऐ हउमै गई, ता सचु बसिआ मनि आइ।

    सचु कमावै सचि रहै, सचे सेवि समाइ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 158)
    • संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
    • रचनाकार : अमरदास
    • प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1981

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए