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पिय बड़ सुंदर सखि

piy baD sundar sakhi

धरनीदास

अन्य

अन्य

धरनीदास

पिय बड़ सुंदर सखि

धरनीदास

और अधिकधरनीदास

    पिय बड़ सुंदर सखि, बनि गैला सहज सनेह।

    जे जे सुंदरि देखन आवै, ता कर हरि ले ज्ञान।

    तीन भुवन कै रूप तुलै नहिं, कैसेके करउँ बखान॥

    जे अगुवा अस कइल धरतुई, ताहि नेवछावरि जाँव।

    जे बाम्हन अस लगन विचारल, तासु चरन लपटाँव॥

    चारिउ ओर जहाँ तहँ चरचा, आन कै नाँव लेइ।

    ताहि सखी की बलि-बलि जैहौं, जे मोरी साइति देइ॥

    झलमल-झलमल झलकत देखो, रोम-रोम मन मान।

    धरनी हर्षित गुन गन गावै, जुग-जुग ह्वै जनि आन॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 27)
    • रचनाकार : धरनीदास
    • प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
    • संस्करण : 1931

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