सत्यनारायण कविरत्न की संपूर्ण रचनाएँ
कविता 1
दोहा 13
चित चिंता तजि, डारिकैं, भार, जगत के नेम।
रे मन, स्यामा-स्याम की, सरन गहौ करि प्रेम॥
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मकराकृत कुंडल स्रवन, पीतवरन तन ईस।
सहित राधिका मो हृदय, बास करो गोपीस॥
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पीतपटी लपटाय कैं, लैं लकुटी अभिराम।
बसहु मंद मुसिक्याय उर, सगुन-रूप घनस्याम॥
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श्रीराधा वृषभानुजा, कृष्ण-प्रिया हरि-सक्ति।
देहु अचल निज पदन की, परमपावनी भक्ति॥
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सजल सरल घनस्याम अब, दीजै रस बरसाय।
जासों ब्रजभाषा-लता, हरी-भरी लहराय॥
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