भारतेंदु हरिश्चंद्र के यात्रा वृत्तांत
सरयूपार की यात्रा
अयोध्या कल साँझ को चिराग़ जले रेल पर सवार हुए, यह गए वह गए। राह में स्टेशनों पर बड़ी भीड़ न जाने क्यों? और मज़ा यह कि पानी कहीं नहीं मिलता था। यह कंपनी मजीद के ख़ानदान की मालूम होती है कि ईमानदारों को पानी तक नहीं देती। या सिप्रस का टापू सर्कार के हाथ
हरिद्वार
श्रीमान क.व.सु. संपादक महोदयेषु, श्री हरिद्वार को रुड़की के मार्ग से जाना होता है। रुड़की शहर अँग्रेज़ों का बसाया हुआ है। इसमें दो-तीन वस्तु देखने योग्य हैं, एक तो (कारीगरी) शिल्प विद्या का बड़ा कारख़ाना है जिसमें जलचक्की पवनचक्की और भी कई बड़े-बड़े
वैद्दनाथ की यात्रा
श्रीमन्महाराज काशी-नरेश के साथ वैद्दनाथ की यात्रा को चले। दो बजे दिन के पैसेंजर ट्रेन में सवार हुए। चारों ओर हरी-हरी घास का फ़र्श। ऊपर रंग-रंग के बादल। गड़हों में पानी भरा हुआ। सब कुछ सुंदर। मार्ग में श्री महाराज के मुख से अनेक प्रकार के अमृतमय उपदेश
लखनऊ
मेरे लखनऊ गमन का वृतांत निश्चय आप के पाठकगणों को मनोरंजक होगा। कानपुर से लखनऊ आने के हेतु एक कंपनी अलग है इसका नाम अ. रू. रे. कंपनी है इसका काम अभी नया है और इसके गार्ड इत्यादिक सत्र काम चलाने वाले हिंदूस्तानी है। स्टेशन कान्हपुर का तो दरिद्र सा है पर
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere