भारतेंदु हरिश्चंद्र के उद्धरण


मेरी आँख तेरी आँख पर है और तेरी आँखें अन्यत्र हैं। मैं तेरी लीला देखता हूँ और तू दूसरे की।
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दुष्ट कहीं का, वेद-पुराण का नाम लेता है। मांस-मदिरा खाना पीना है तो यों ही खाने में किसने रोका है, धर्म को बीच में क्यों डालता है?
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