भारतेंदु हरिश्चंद्र के व्यंग्य
स्त्री सेवा पद्धति
इस पूजा से अश्रु जल ही पाद्य है, दीर्घ श्वास ही अर्घ्य है, आश्वासन ही आचमन है, मधुर भाषण ही मधुपर्क है, सुवर्णालंकार ही पुष्प हैं, धैर्य ही धूप है, दीनता ही दीपक है, चुप रहना ही चंदन है, और बनारसी साड़ी ही विल्वपत्र है, आयुरूपी आँगन में सौंदर्य तृष्णा
सबै जात गोपाल की
(एक पंडित और एक क्षत्री आते हैं।) क्षत्री—महाराज देखिए बड़ा अंधेर हो गया है कि ब्राह्मणों ने व्यवस्था दे दी कि कायस्थ भी क्षत्री हैं, कहिए अब कैसे काम चलैगा। पंडित—क्यों इसमें दोष क्या हुआ? ‘‘सबै जात गोपाल की’’ और फिर यह तो हिंदुओं का शास्त्र पंसारी
अंगरेज़ स्तोत्र
हे अंगरेज़! हम तुमको प्रणाम करते हैं। तुम नानागुण विभूषित, सुन्दर कान्ति विशिष्ट, बहुत संपद हो; अतएव हे अंगरेज! हम तुमको प्रणाम करते हैं। तुम हर्ता—शचुदल के; तुम कर्ता आईनादि के, तुम विधाता—नौकरियों के, अतएव हे अंगरेज़! हम तुमको प्रणाम करते हैं। तुम
पाँचवें पैगम्बर!
लोगों दौड़ो, मैं पाँचवाँ पैगम्बर हूँ, दाऊ, ईसा, मूसा, मुहम्मद—ये चार हो चुके, मेरा नाम चूसा पैगम्बर है, मैं विधवा के गर्भ से जन्मा हूँ और ईश्वर अर्थात् खुदा की ओर से तुम्हारे पास आया हूँ। इस्से मुझपर ईमान लाओ, नहीं तो ईश्वर के कोप में पड़ोगे।। मुझको पृथ्वी
अथ मदिरास्तवराज
हे मदिरे! तुम साक्षात भगवती का स्वरूप हौ, जगत तुमसे व्याप्त है, तुम्हारी स्तुति करने को कौन समर्थ है, अतएव तुम्हें प्रणाम करना योग्य है।। हे मद्य! तुम्हें सौत्रामणि यज्ञ में तो वेद ने प्रत्यक्ष आदर किया है, परंतु तुम अपने सेव्य रूप प्रच्छन्न अमृत प्रवाह
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere