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जयति श्री राधिके सकल-सुख-साधिके

jayti shri radhike sakal sukh sadhike

गदाधर भट्ट

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गदाधर भट्ट

जयति श्री राधिके सकल-सुख-साधिके

गदाधर भट्ट

और अधिकगदाधर भट्ट

    जयति श्री राधिके सकल-सुख-साधिके,

    तरुनि-मनि नित्य नवतन किसोरी।

    कृष्ण-तनु-लीन मनरूप की चातकी,

    कृष्णदृग-मृग-विश्राम हित पद्मिनी,

    कृष्णदृग-मृगज बंधन सुडोरी।

    कृष्ण-अनुराग-मकरंद की मधुकरी,

    कृष्ण-गुन-गान-रस-सिंधु बोरी॥

    विमुख परचित तें चित जाकौ सदा,

    करत निज नाह की चित्त-चोरी।

    प्रकृति यह ‘गदाधर’ कहत कैसें बनै,

    अमित महिमा इतैं बुद्धि थोरी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 81)
    • रचनाकार : गदाधर भट्ट
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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