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पिता के पत्र पुत्री के नाम (जातियों का बनना)

pita ke patr putri ke naam (jatiyon ka banna)

जवाहरलाल नेहरू

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जवाहरलाल नेहरू

पिता के पत्र पुत्री के नाम (जातियों का बनना)

जवाहरलाल नेहरू

और अधिकजवाहरलाल नेहरू

    मैंने अपने पिछले ख़तों में तुम्हें बतलाया है कि शुरू में जब आदमी पैदा हुआ तो वह बहुत कुछ जानवरों से मिलता था। धीरे-धीरे हज़ारों बरसों में उसने तरक़्क़ी की और पहले से ज़्यादा होशियार हो गया। पहले वह अकेले ही जानवरों का शिकार करता होगा, जैसे जंगली जानवर आज भी करते हैं। कुछ दिनों के बाद उसे मालूम हुआ कि और आदमियों के साथ एक गरोह में रहना ज़्यादा अक़्ल की बात है और उसमें जान जाने का डर भी कम है। एक साथ रहकर वे ज़्यादा मज़बूत हो जाते थे और जानवरों या दूसरे आदमियों के हमलों का ज़्यादा अच्छी तरह मुक़ाबिला कर सकते थे। जानवर भी तो अपनी रक्षा के लिए अक्सर झुंडों में रहा करते हैं। भेड़, बकरियाँ और हिरन, यहाँ तक कि हाथी भी झुंडों में ही रहते हैं। जब झुंड सोता है, तो उनमें से एक जागता रहता है और उनका पहरा देता है। तुमने भेड़ियों के झुंड की कहानियाँ पढ़ी होंगी। रूस में जाड़ों के दिनों में वे झुंड बाँधकर चलते हैं और जब उन्हें भूख लगती है, जाड़ों में उन्हें ज़्यादा भूख लगती भी है, तो आदमियों पर हमला कर देते हैं। एक भेड़िया कभी आदमी पर हमला नहीं करता लेकिन उनका एक झुंड इतना मज़बूत हो जाता है कि कई आदमियों पर भी हमला कर बैठता है। तब आदमियों को अपनी जान लेकर भागना पड़ता है और अक्सर भेड़ियों बर्फ़ वाली गाड़ियों में बैठे हुए आदमियों में दौड़ होती है।

    इस तरह पुराने ज़माने के आदमियों ने सभ्यता में जो पहली तरक़्क़ी की वह मिलकर झुंडों में रहना था। इस तरह जातियों (फिरकों) की बुनियाद पड़ी। वे साथ-साथ काम करने लगे। वे एक दूसरे की मदद करते रहते थे। हर-एक आदमी पहले अपनी जाति का ख़याल करता था और तब अपना। अगर जाति पर कोई संकट आता तो हर-एक जाति की तरफ़ से लड़ता था। और अगर कोई आदमी जाति से लड़ने से इंकार करता तो निकाल बाहर किया जाता था।

    अब अगर बहुत से आदमी एक साथ मिलकर काम करना चाहते हैं तो उन्हें कायदे के साथ काम करना पड़ेगा। अगर हर-एक आदमी अपनी मर्ज़ी के मुताबिक काम करे तो वह जाति बहुत दिन चलेगी। इसलिए किसी एक को उनका सरदार बनना पड़ता है। जानवरों के झुंडों में भी तो सरदार होते हैं। जातियों में वही आदमी सरदार चुना जाता था जो सबसे मज़बूत होता था इसलिए कि उस ज़माने में बहुत लड़ाई करनी पड़ती थी।

    अगर एक जाति के आदमी आपस में लड़ने लगें तो जाति नष्ट हो जाएगी। इसलिए सरदार देखता रहता था कि लोग आपस में लड़ने पावें। हाँ, एक जाति दूसरी जाति से लड़ सकती थी और लड़ती थी। यह तरीक़ा उस पुराने तरीक़े से अच्छा था हर-एक आदमी अकेला ही लड़ता था।

    शुरू-शुरू की जातियाँ बड़े-बड़े परिवारों की तरह रही होंगी। उसके सब आदमी एक दूसरे के रिश्तेदार होते होंगे। ज्यों-ज्यों यह परिवार बढ़े जातियाँ भी बढ़ीं।

    उस पुराने ज़माने में आदमी का जीवन बहुत कठिन रहा होगा, ख़ासकर जातियों के बनने के पहले। उसके पास कोई घर था, ना कपड़े थे। हाँ, शायद जानवरों के खालें पहनने को मिल जाती हों। और उसे बराबर लड़ना पड़ता रहा होगा। अपने भोजन के लिए या तो जानवरों का शिकार करना पड़ता था या जंगली फल करने पड़ते थे। उसे अपने चारों तरफ़ दुश्मन ही दुश्मन नज़र आते होंगे। प्रकृति भी उसे दुश्मन ही मालूम होती होगी, क्योंकि ओले और बर्फ़ और भूचाल वही तो लाती थी। बेचारे की दशा कितनी दीन थी। ज़मीन पे रेंग रहा है, और हर-एक चीज़ से डरता है इसलिए कि वह कोई बात समझ नहीं सकता। अगर ओले गिरते तो वह समझता कि कोई देवता बादल में बैठा हुआ उसपर निशाना मार रहा है। वह डर जाता था और उस बादल में बैठे हुए आदमी को ख़ुश करने के लिए कुछ कुछ करना चाहता था जो उसपर ओले और पानी और बर्फ़ गिरा रहा था। लेकिन उसे ख़ुश करे तो कैसे! वह बहुत समझदार था, होशियार था। उसने सोचा होगा कि बादलों का देवता हमारी ही तरह होगा और खाने की चीज़ें पसंद करता होगा। इसलिए वह कुछ मांस रख देता था, या किसी जानवर की क़ुर्बानी कर के छोड़ देता था कि देवता आकर खाले। वह सोचता था कि इस उपाय से ओला या पानी बंद हो जाएगा। हमें यह पागलपन मालूम होता है क्योंकि हम मेह या ओले या बर्फ़ के गिरने का सबब जानते हैं। जानवरों के मारने से उसका कोई संबंध नहीं है। लेकिन आज भी ऐसे आदमी मौजूद हैं जो इतने नासमझ हैं कि अब तक वही काम किए जाते हैं।

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