पिता के पत्र पुत्री के नाम (जानदार चीज़ें कैसे पैदा हुई)
pita ke patr putri ke naam (janadar chizen kaise paida hui)
जवाहरलाल नेहरू
Jawaharlal Nehru

पिता के पत्र पुत्री के नाम (जानदार चीज़ें कैसे पैदा हुई)
pita ke patr putri ke naam (janadar chizen kaise paida hui)
Jawaharlal Nehru
जवाहरलाल नेहरू
और अधिकजवाहरलाल नेहरू
पिछले ख़त में मैं तुम्हें बतला चुका हूँ कि बहुत दिनों तक ज़मीन इतनी गर्म थी कि कोई जानदार चीज़ उस पर रह ही न सकती थी। तुम पूछोगी कि ज़मीन पर जानदार चीज़ों का आना कब शुरू हुआ और पहले कौन-कौन सी चीज़ें आईं। यह बड़े मज़े का सवाल है, पर इसका जवाब देना भी आसान नहीं है। पहले यह देखो कि जान है क्या चीज़। शायद तुम कहोगी कि आदमी और जानवर जानदार हैं। लेकिन दरख़्तों और झाड़ियों, फूलों और तरकारियों को क्या कहोगी? यह मानना पड़ेगा कि वे सब भी जानदार हैं। वे पैदा होते हैं, पानी पीते हैं, हवा में साँस लेते हैं और मर जाते हैं। दरख़्त और जानवर में ख़ास फ़र्क़ यह है कि जानवर चलता-फिरता है, और दरख़्त हिल नहीं सकते। तुमको याद होगा कि मैंने लंदन के क्यू गार्डन में तुम्हें कुछ पौधे दिखाए थे। ये पौधे, जिन्हें आर्चिड और पिचर1 कहते हैं, सचमुच मक्खियाँ खा जाते हैं। इसी तरह कुछ जानवर भी ऐसे हैं, जो समुद्र के नीचे रहते हैं और चल फिर नहीं सकते। स्पंज ऐसा ही जानवर है। कभी-कभी तो किसी चीज़ को देखकर यह बतलाना मुश्किल हो जाता है कि वह पौधा है या जानवर। जब तुम वनस्पति-शास्त्र (जड़ीबूटी की विद्या) या जीव-शास्त्र (जिसमें जीव-जंतुओं का हाल लिखा होता है) पढ़ोगी तो तुम इन अजीब चीज़ों को देखोगी जो न जानवर हैं न पौधे। कुछ लोगों का ख़याल है कि पत्थरों और चट्टानों में भी एक क़िस्म की जान है और उन्हें भी एक तरह का दर्द होता है; मगर हमको इसका पता नहीं चलता। शायद तुम्हें उन महाशय की याद होगी जो हमसे जिनेवा में मिलने आए थे। उनका नाम है सर जगदीश बोस। उन्होंने परीक्षा करके साबित किया है कि पौधों में बहुत कुछ जान होती है। इनका ख़याल है कि पत्थरों में भी कुछ जान होती है।
इससे तुम्हें मालूम हो गया होगा कि किसी चीज़ को जानदार या बेजान कहना कितना मुश्किल है। लेकिन इस वक़्त्त हम पत्थरों को छोड़ देते हैं, सिर्फ़ जानवरों और पौधों पर ही विचार करते हैं। आज संसार में हज़ारों जानदार चीज़ें हैं। वे सभी क़िस्म की हैं। मर्द हैं और औरतें हैं। और इनमें से कुछ लोग होशियार हैं और कुछ लोग बेवक़ूफ़ हैं। जानकर भी बहुत तरह के हैं और उनमें भी हाथी, बंदर या चींटी की तरह समझदार जानवर हैं और बहुत से जानवर बिलकुल बेसमझ भी हैं। मछलियाँ और समुद्र की और बहुत चीज़ें जानदारों में और भी नीचे दर्जे की हैं। उनसे भी नीचा दर्जा स्पंजों और मुरब्बे की शक्ल की मछलियों का है जो आधा पौधा और आधा जानवर हैं।
अब हमको इस बात का पता लगाना है कि ये भिन्न-भिन्न प्रकार के जानवर एक साथ और एक वक़्त पैदा हुए या एक-एक करके धीरे-धीरे। हमें यह कैसे मालूम हो? उस पुराने ज़माने की लिखी हुई तो कोई किताब है नहीं। लेकिन क्या संसार की पुस्तक से हमारा काम चल सकता है? हाँ, चल सकता है। पुरानी चट्टानों में जानवरों की हड्डियाँ मिलती हैं, इन्हें अँग्रेज़ी में फौसिल या पथराई हुई हड्डी कहते हैं। इन हड्डियों से इस बात का पता चलता है कि उस चट्टान के बनने के बहुत पहले वह जानवर ज़रूर रहा होगा जिसकी हड्डियाँ मिली हैं। तुमने इस तरह की बहुत सी छोटी और बड़ी हड्डियाँ लंदन के साउथ कैंसिंगटन के अजायबघर में देखी थीं।
जब कोई जानवर मर जाता है तो उसका नर्म और मांस वाला भाग तो फ़ौरन ही सड़ जाता है, लेकिन उसकी हड्डियाँ बहुत दिनों तक बनी रहती हैं। यही हड्डियाँ उस पुराने ज़माने के जानवरों का कुछ हाल हमें बताती हैं। लेकिन अगर कोई जानवर बिना हड्डी का ही हो, जैसे मुरब्बे की शक्ल वाली मछलियाँ होती हैं, तो उसके मर जाने पर कुछ भी बाक़ी न रहेगा।
जब हम चट्टानों को ग़ौर देखते हैं और बहुत सी पुरानी हड्डियों को जमा कर लेते हैं तो हमें मालूम हो जाता है कि भिन्न-भिन्न समय में भिन्न-भिन्न प्रकार के जानवर रहते थे। सब के सब एक बारगी कहीं से कूदकर नहीं आ गए। सबसे पहले छिलकेदार जानवर पैदा हुए जैसे घोंघे। समुद्र के किनारे तुम जो सुंदर घोंघे बटोरती हो वे उन जानवरों के कड़े छिलके हैं जो मर चुके हैं। उसके बाद ज़्यादा ऊँचे दर्जे के जानवर पैदा हुए, जिनमें साँप और हाथी जैसे बड़े जानवर थे, और वह चिड़ियाँ और जानवर भी, जो आज तक मौजूद हैं। सबके पीछे आदमियों की हड्डियाँ मिलती हैं। इससे यह पता चलता है कि जानवरों के पैदा होने में भी एक क्रम था। पहले नीचे दर्जे के जानवर आए, तब ज़्यादा ऊँचे दर्जे के जानवर पैदा हुए और ज्यों-ज्यों दिन गुज़रते गए वे और भी बारीक होते गए और आख़िर में सबसे ऊँचे दर्जे का जानवर यानी आदमी पैदा हुआ। सीधे सादे स्पंज और घोंघे में कैसे इतनी तब्दीलियाँ हुई और कैसे वे इतने ऊँचे दर्जे पर पहुँच गए; यह बड़ी मज़ेदार कहानी है और किसी दिन मैं उसका हाल बताऊँगा। इस वक़्त तो हम सिर्फ़ उन जानदारों का ज़िक्र कर रहे हैं जो पहले पैदा हुए।
ज़मीन के ठंडे हो जाने के बाद शायद पहली जानदार चीज़ वह नर्म मुरब्बे की सी चीज़ थी जिस पर न कोई खोल था न कोई हड्डी थी वह समुद्र में रहती थी। हमारे पास उनकी हड्डियाँ नहीं हैं क्योंकि उनके हड्डियाँ थीं ही नहीं, इसलिए हमें कुछ न कुछ अटकल से काम लेना पड़ता है। आज भी समुद्र में बहुत सी मुरब्बे की सी चीजें हैं। वे गोल होती हैं लेकिन उनकी सूरत बराबर बदलती रहती है क्योंकि न उनमें कोई हड्डी है न खोल। उनकी सूरत कुछ इस तरह की होती है।
तुम देखती हो कि बीच में एक दाग़ है। इसे बीज कहते हैं और यह एक तरह से उसका दिल है। यह जानवर, या इन्हें जो चाहे कहो, एक अजीब तरीक़े से कटकर एक के दो हो जाते हैं। पहले वे एक जगह पतले होने लगते हैं और इसी तरह पतले होते चले जाते हैं, यहाँ तक कि टूटकर दो मुरब्बे की सी चीज़ें बन जाते हैं और दोनों ही की शक्ल असली लोथड़े की सी होती है।
बीज या दिल के भी दो टुकड़े हो जाते हैं और दोनों लोथड़ों के हिस्से में इसका एक-एक टुकड़ा आ जाता है। इस तरह ये जानवर टूटते और बढ़ते चले जाते हैं।
इसी तरह की कोई चीज़ सबसे पहले हमारे संसार में आई होगी। जानदार चीज़ों का कितना सीधा सादा और तुच्छ रूप था! सारी दुनिया में इससे अच्छी या ऊँचे दर्जे की चीज़ उस वक़्त न थी। असली जानवर पैदा न हुए थे और आदमी पैदा होने में लाखों बरस की देर थी।
इन लोथड़ों के बाद समुद्र की घास और घोंघे, केकड़े और कीड़े पैदा हुए। तब मछलियाँ आईं। इनके बारे में हमें बहुत सी बातें मालूम होती हैं क्योंकि उन पर कड़े खोल या हड्डियाँ थीं और इसे वे हमारे लिए छोड़ गई हैं ताकि उनके मरने के बहुत दिनों के बाद हम उन पर ग़ौर कर सकें। यह घोंघे समुद्र के किनारे ज़मीन पर पड़े रह गए। इन पर बालू और ताज़ी मिट्टी जमती गई और ये बहुत हिफ़ाज़त से पड़े रहे। नीचे की मिट्टी, ऊपर की बालू और मिट्टी के बोझ और दबाव से कड़ी होती गई। यहाँ तक कि वह पत्थर जैसी हो गई। इस तरह समुद्र के नीचे चट्टानें बन गईं। किसी भूचाल के आ जाने से या और किसी सबब से ये चट्टानें समुद्र के नीचे से निकल आईं और सूखी ज़मीन बन गई। तब इस सूखी चट्टान को नदियाँ और मेंह बहा ले गए। और जो हड्डियों उनमें लाखों बरसों से छिपी थीं बाहर निकल आई। इस तरह हमें ये घोंघे या हड्डियाँ मिल गईं जिनसे हमें मालूम हुआ कि हमारी ज़मीन आदमी के पैदा होने के पहले कैसी थी।
दूसरी चिट्ठी में हम इस बात पर विचार करेंगे कि ये नीचे दर्जे के जानवर कैसे बढ़ते-बढ़ते आजकल की सी सूरत के हो गए।
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