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पिता के पत्र पुत्री के नाम (ज़मीन कैसे बनी)

pita ke patr putri ke naam (zamin kaise bani)

जवाहरलाल नेहरू

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जवाहरलाल नेहरू

पिता के पत्र पुत्री के नाम (ज़मीन कैसे बनी)

जवाहरलाल नेहरू

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    तुम जानती हो कि ज़मीन सूरज के चारों तरफ़ घूमती है और चाँद ज़मीन के चारों तरफ़ घूमता है। शायद तुम्हें यह भी याद है कि ऐसे और भी कई गोले हैं जो ज़मीन की तरह सूरज का चक्कर लगाते हैं। ये सब, हमारी ज़मीन को मिलाकर, सूरज के ग्रह कहलाते हैं। चाँद ज़मीन का उपग्रह कहलाता है; इसलिए कि वह ज़मीन के ही आसपास रहता है। दूसरे ग्रहों के भी अपने-अपने उपग्रह हैं। सूरज उसके ग्रह और ग्रहों के उपग्रह मिलकर मानों एक सुखी परिवार बन जाता है। इस परिवार को सौर जगत कहते हैं। सौर का अर्थ है सूरज का। सूरज इन सब ग्रहों और उपग्रहों का बाबा है। इसीलिए इस परिवार को सौर जगत कहते हैं।

    रात को तुम आसमान में हज़ारों सितारे देखती हो। इनमें से थोड़े से ही ग्रह हैं और बाक़ी सितारे हैं। क्या तुम बता सकती हो कि ग्रह और तारे में क्या फ़र्क़ है? ग्रह हमारी ज़मीन की तरह सितारों से बहुत छोटे होते हैं लेकिन आसमान में वे बड़े नज़र आते हैं, क्योंकि ज़मीन से उनका फ़ासला कम है। ठीक ऐसा ही समझो जैसे चाँद, जो बिलकुल बच्चे की तरह है, हमारे नज़दीक होने की वजह से इतना बड़ा मालूम होता है। लेकिन सितारों और ग्रहों के पहचानने का असली तरीक़ा यह है कि वे जगमगाते हैं या नहीं। सितारे जगमगाते हैं, ग्रह नहीं जगमगाते। इसका सबब यह है कि ग्रह सूर्य की रौशनी से चमकते हैं। चाँद और ग्रहों में जो चमक हम देखते हैं वह धूप की है। असली सितारे बिलकुल सूरज की तरह हैं; वे बहुत गर्म जलते हुए गोले हैं जो आप ही आप चमकते हैं। दरअसल सूरज ख़ुद एक सितारा है। हमें यह बड़ा आग का गोला सा मालूम होता है, इसलिए कि ज़मीन से उसकी दूरी और सितारों से कम है।

    इससे अब तुम्हें मालूम हो गया कि हमारी ज़मीन भी सूरज के परिवार में सौर जगत में है। हम समझते हैं कि ज़मीन बहुत बड़ी है और हमारे जैसी छोटी सी चीज़ को देखते हुए वह है भी बहुत बड़ी। अगर किसी तेज़ गाड़ी या जहाज़ पर बैठो तो इसके एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक जाने में हफ़्तों और महीनों लग जाते हैं। लेकिन हमें चाहे यह कितनी ही बड़ी दिखाई दे असल में यह धूल के एक कण की तरह हवा में लटकी हुई है। सूरज ज़मीन से करोड़ों मिल दूर है और दूसरे सितारे इससे भी ज़्यादा दूर हैं।

    ज्योतिषी या वे लोग जो कि सितारों के बारे में बहुत सी बातें जानते हैं हमें बतलाते हैं कि बहुत दिन पहले हमारी ज़मीन और सारे ग्रह सूर्य ही में मिले हुए थे। आजकल की तरह उस समय भी सूरज जलती हुई धातु का निहायत गर्म गोला था। किसी वजह से सूरज के छोटे-छोटे टुकड़े उससे टूटकर हवा में निकल पड़े। लेकिन वे अपने पिता सूर्य से बिलकुल अलग हो सके। वे इस तरह सूर्य के गिर्द चक्कर लगाने लगे, जैसे उनको किसी ने रस्सी से बाँध रखा हो। यह विचित्र शक्ति जिसकी मैंने रस्सी से मिसाल दी है एक ऐसी ताक़त है, जो छोटी चीज़ों को बड़ी चीज़ों की तरफ़ खींचती है। यह वही ताक़त है, जो वज़नदार चीज़ों को ज़मीन पर गिरा देती है। हमारे पास ज़मीन ही सबसे भारी चीज़ है, इसी से वह हर एक चीज़ को अपनी तरफ़ खींच लेती है।

    इस तरह हमारी ज़मीन भी सूरज से निकल भागी थी। उस ज़माने में यह बहुत गर्म रही होगी; इसके चारों तरफ़ की हवा भी बहुत गर्म रही होगी लेकिन सूरज से बहुत ही छोटी होने के कारण वह जल्द ठंडी होने लगी। सूरज की गर्मी भी दिन-दिन कम होती जा रही है लेकिन उसे बिलकुल ठंडे हो जाने में लाखों बरस लगेंगे। ज़मीन के ठंडे होने में बहुत थोड़े दिन लगे। जब वह गर्म थी तब इस पर कोई जानदार चीज़ जैसे आदमी, जानवर, पौधा या पेड़ रह सकते थे। सब चीज़ें जल जाती थीं।

    जैसे सूरज का एक टुकड़ा टूटकर ज़मीन हो गया इसी तरह ज़मीन का एक टुकड़ा टूटकर निकल भागा और चाँद हो गया। बहुत से लोगों का ख़याल है कि चाँद के निकलने से जो गड्ढा हो गया वह अमरीका और जापान के बीच का प्रशांत-सागर है। मगर ज़मीन को ठंडे होने में भी बहुत दिन लग गए। धीरे-धीरे ज़मीन को ऊपरी तह तो ज़्यादा ठंडी हो गई लेकिन उसका भीतरी हिस्सा गर्म बना रहा। अब भी अगर तुम किसी कोयले की खान में घुसो, तो ज्यों-ज्यों तुम नीचे उतरोगी गर्मी बढ़ती जाएगी। शायद अगर तुम बहुत दूर नीचे चली जाओ तो तुम्हें ज़मीन अंगारे की तरह मिलेगी। चाँद भी ठंडा होने लगा वह ज़मीन से भी ज़्यादा छोटा था इसलिए उसके ठंडे होने में ज़मीन से भी कम दिन लगे। तुम्हें उसकी ठंडक कितनी प्यारी मालूम होती है। उसे ठंडा चाँद ही कहते हैं। शायद वह बर्फ़ के पहाड़ों और बर्फ़ से ढके हुए मैदानों से भरा हुआ है।

    जब ज़मीन ठंडी हो गई तो हवा में जितनी भाप थी। वह जमकर पानी बन गई और शायद मेंह बनकर बरस पड़ी। उस ज़माने में बहुत ही ज़्यादा पानी बरसा होगा। यह सब पानी ज़मीन के बड़े-बड़े गड़हों में भर गया और इस तरह बड़े-बड़े समुद्र और सागर बन गए।

    ज्यों-ज्यों ज़मीन ठंडी होती गई और समुद्र भी ठंडे होते गए त्यों-त्यों दोनों जानदार चीज़ों के रहने लायक़ होते गए।

    दूसरे ख़त में मैं तुम्हें जानदार चीज़ों के पैदा होने का हाल लिखूँगा।

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